जब जब होई धर्म की हानी, बाढै असुर अधम अभिमानी। तब तब प्रभु धरि मनुज शरीरा, हरै सदा सज्जन भव पीरा।।
मान्यता है कि द्वापर में त्रेरा की तरह द्वापर में भी अर्ध अपनी पांव पसार चुका था। धर्म की स्थापना हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य के रूप अवतार लिया और अधर्मियों को बैकुंठ धाम भेजा। गोवर्धन अर्थात गौवश को बढ़ाने वाला। मान्यता है कि जब गौवंश बढ़ेगा तो धन की बढ़ोत्तरी होगी और लोगों में खुशहाली आएगी। दीपावली के दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन की पूजा का त्योहार बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन और गायों की पूजा करने का एक अलग ही महत्व है। गोवर्धन पूजा के मौके पर लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत के आकार चित्र बनाकर आस्था और विश्वास के साथ गोवर्धन की पूजा के साथ ही परिक्रमा करने की परंपरा है। इस दिन भगवान को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, इसीलिए गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है।
बाल्यावस्था में ही भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि बृजवासियों के साथ माता यशोदा भी इंद्र देवता की पूजा कर रही हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि ब्रज के लोग देवराज इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं। माता ने बताया कि इंद्र देवता प्रसन्न होते हैं और वह वर्षा करते हैं, वर्षा अधिक होने से अन्न की पैदावार ज्यादा होती और गायों को चारने के लिए घास ज्यादा उगता है जिससे गायों को हरा चारा पूर्ण मात्रा में मिलता है। इस बात को लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा यदि ऐसा है तो सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए जहां गायें चरती हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी इंद्र देवता की पूजा करने के बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। देवराज ने इंद्र ने इस बात को लेकर अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा करने लगे। इससे ब्रज में भारी बाढ़ आ गई, ब्रज लोग परेशान होने लगे। उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों और गायों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठा कर महा प्रलय समान बारिश से रक्षा की थी। देवराज इंद्र को मालूम हो गया कि श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार हैं। इसलिए अपनी बड़ी भूल का एहसास हुआ। देवराज इंद्र को भी भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मागनी पड़ी। इन्द्रदेव की क्षमा याचना पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तभी से यह त्योहार गोवर्धनपूजा के रूप में मनाया जाता है।
आज मनाई जा रही भातृ द्वितीया या यम द्वितीया
लखनऊः दीपावली के बाद भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भाई दूज जिसको भातृ द्वितीया या यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। आज 6 नवंबर को बड़े ही आस्था और विश्वास के साथ भाई दूज या भैया दूज (ॅभातृ द्वितीया या यम द्वितीया ) का त्योहार मनाया जा रहा है। यह वह शुभ घड़ी होती जब भाई अपनी बहन से उसके घर तिलक आस्था और विश्वास का लगवाने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार भाई दूज को बहन के तिलक का विशेष महत्व होता है। शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य का कई गुना ज्यादा फलदायक होता
6 नवंबर अर्थात शनिवार को सुबह 8 से 9 बजे के मध्य शुभ चौघड़िया मुहूर्त में भाई को टीका करने का अच्छा समय होगा। दोपहर 12 से शाम 4 बजे के मध्य चर लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त रहेंगे। 12 बजे से शाम 4 बजे के बीच भाई को टीका करने का शुभ मुहूर्त होगा।
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