बीजेपी की कार्यशैली, कहा गया है- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में सुमिरन करे न कोई, यदि सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे का होई

बीजेपी की कार्यशैली, कहा गया है- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में सुमिरन करे न कोई, यदि सुख में सुमिरन करें तो दुःख काहे का होई


यहां बताना यह है कि बीजेपी जब मुसीबत आती है तब जागती है और उपाय ढूंढने का प्रयास करती है। यदि हमेशा बचाव के उपाय ढूंढे जाए तो मुसीबत आ ही नहीं पाएगी। चाहे कोरोना के समय बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की हो या फिर महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, पर्यावरण या फिर किसानों की समस्या जो आज सिर पर चढ़ कर बोल रही है। यदि पहले मिल बैठकर विचार किया होता तो आज किसान आंदोलन न करते न ही 700 किसान शहीद हुए होते। जिस तरह आए दिन हमारे वीर जवान शहीद हो रहे हैं। उनकी शहादत को कई किया जा सकता था। लेकिन बीजेपी हमेशा चुनाव के मूड में रहती है। बाकी सब साइलेंट मूड में। 

काफी दिनों से चारो तरफ महंगाई को लेकर जनता में त्राहि-त्राहि मची है। चार राज्यों के उपचुुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद वह भी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा के गृह राज्य हिमाचल में और आने वाले उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव-2022 और आंदोलनरत किसानों के कारण सरकार कुंभकरण नींद से जागी और डीजल, पेट्रोल के मूल्य में 10 रुपये की कटौती कर जनता को चुनावी मौसम में राहत दी है। लेकिन जो माल-भाड़े में किराया बढ़ गया है वह तो कम नहीं होगा। इसलिए आम जनता को महंगाई से कोई राहत मिलने वाली नहीं है। हा फिलहाल गरीब लोगों को मोटरबाइक चलाने में कुछ राहत जरूर मिली है। 

कुछ किसान किसान सम्मान निधि के कारण थोड़ा बहुत राहत महसूस करते हैं। दूसरी तरफ खाद की किल्लत और बोरी में 50 किलो की जगह 45 किलो और मूल्य में बढ़ोत्तरी इसकी मार किसान पर पड़ रही है। दूसरी तरफ सरकार फ्री राशन की अवधि मार्च तक बढ़ा दी है। फ्री राशान आगे मिलेगा या नहीं यह तो भविष्य ही बतायेगा। इतना जरूर है कि अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के बाद फिर अपने ही भाग्य के सहारे रहना है। एक सर्वे के अनुसार भुखमरी में हमारा देश 101 नंबर पर है। पानी की बोतल 20 से 25 रुपये में मिल रही है। जबकि किसान का गेहूं, धान 20 रुपये से नीचे बिकता है। 6 फीसद किसान ही अपनी फसल को एमएसपी रेट पर बेंच पाते हैं। बाकी किसान फसल को औने-पौने दामों पर बेंचते हैं। ऊपर से सरकार ने तीन नए कृषि कानूनों को किसानों पर लाद दिया, जिसका किसान विगत 11 माह से विरोध कर रहे हैं। इस बीच सरकार और किसानों में 12 दौर की वार्ता हो चुकी है। अब वह भी 22 जनवरी के बाद से बंद है। आगे वार्ता होगी या नहीं यह तो समय ही बताएंगा। हां इस बीच लगभग 700 किसान शहीद हो चुके हैं। लेकिन सरकार हठधर्मिता पर अड़ी है। 


किसानों की आय दो गुनी नहीं हुई हां वर्ष 2022 के चुनावी स्वागत के लिए तैयार हो जाएं। सर्वे के अनुसार किसान की एक दिन की आय जहां पहले साढ़े सात आने थी वह कछुआ की चाल से चलकर 50 वर्ष के बाद बढ़ कर 27 रुपये हो गई है। अब जब किसान की आय दो गुनी हो जाएगी अर्थात एक दिन की आय 54 रुपय हो जाएगी। उधर मनरेगा में एक दिन की मजदूरी 200 रुपये से ऊपर है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि  किसान मालामाल हो जाएगा या फिर मजदूर बन जाएगा। जबकि इस बीच सरकारी बाबू की आय 220 गुना बढ़ गई है। इसके बाद खाने के लिए अनाज को महंगे दामों पर आयात करना पड़ेगा। किसानों को वोट बैंक तो बनाया गया लेकिन उसकी मालीहालत पर विचार नहीं किया गया। 

कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि किसान रुपये न होने के कारण बैलगाड़ी की जगह गाड़ी पर गेहूं के बोझ
लाद कर खुद गाड़ी को खींचता है। बच्चों को पढ़ाने-लिखाने और शादी के लिए किसान कर्ज लेता है जो दे नहीं पाता है। जब दैवीय आपदा बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि से किसान की फसल बर्बाद हो जाती है। तब स्थिति और भी विकराल हो जाती है। जिससे किसान उबरने की कोशिश तो करता हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। आखिरी में किसान आत्महत्या ही करता है। यह कब तक चलेगा इसका अंत होता नहीं दिखाई देता।

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