3 नए कृषि कानूनों में मार्केटिंग पॉइंट काला है

 

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3 नए कृषि कानूनों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में शुक्रवार को कहा कि मैं किसानों से 2 माह से पूछ  रहा हूं कि कृषि कानूनों में काला क्या है ताकि उसमें सुधार किया जा सके लेकिन किसी ने अब तक एक भी प्रावधान के बारे में नहीं बताया गया जो किसानों के खिलाफ हो।हमारी सरकार कानून में बदलाव के लिए तैयार है इसका अर्थ यह नहीं कि कृषि कानून में कोई कमी है। इन तीनों नए कृषि कानून में मार्केटिंग पॉइंट सबसे विचारणीय बिंदु है इसी का किसानों को अभय है। यही काला बिंदु है।

किसानों ने कहा कि हमारे देश में बहुत ही जमीन ऐसी है जो अनुपयोगी पड़ी है। सरकार को चाहिए था कि उस जमीन पर  पैदावार कैसे की जाए इस पर जोर देना चाहिए था। इसके बाद इस बात पर जोर देना चाहिए था कि जो लोग खेती करते हैं उनके पास जमीन बहुत ही कम है। बहुत सारी खेती योग्य जमीन नेता मंत्री, अफसर और अभिनेताओं के पास बड़े-बड़े फार्म हाउस के रूप में पड़ी है। यदि सरकार इस पर जोर देती की एक बार फिर से जमीदारी उन्मूलन करती और जिनके पास ज्यादा जमीन है उसको थोड़ी थोड़ी करके किसानों को देती, जिससे हमारे देश में अनाज की पैदावार बढ़ जाती और किसानों की आय अपने आप दोगुनी हो जाती। यहां तो सरकार जिमीदार को बढ़ावा देने के लिए अग्रसर है। जो भविष्य में देश के हित में नहीं होगा।

 हमारे देश में ईवीम और बुलेट ट्रेन कि अभी जरूरत नहीं थी क्योंकि हमारे यहां बेरोजगारी ज्यादा है इसलिए लोगों के पास समय की कमी नहीं है। सत्तारूढ़ दल जब विपक्ष में थे तब सूचना क्रांति, मनरेगा,आरटीआई, जीएसटी आदि का जोर शोर से विरोध किया था। कहा था कि 100 आदमियों का काम एक कंप्यूटर करेगा इसलिए हमारे देश में बेरोजगारी बढ़ जाएगी आज जब सत्ता में हैं तब डिजिटल इंडिया मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया की बात करते हैं। बार-बार यह कहा जाता है कि पुरानी सरकारों ने 60 साल में कुछ नहीं किया। यहां पर यह बताना जरूरी है कि पुरानी सरकारों ने औद्योगिक क्रांति,श्वेत क्रांति, मनरेगा, आरटीआई, हरित क्रांति आदि योजनाएं अभियान के तौर पर चलाई ।जिसका फायदा पूरे देश को मिल रहा है।

यहां यह बता दें कि मार्केटिंग हमेशा कुछ को मार कर के ही बनती है। हक किसी का मिलता किसी को है यही मार्केटिंग का फार्मूला है। जितनी अच्छी मार्केटिंग होगी उतना ही ज्यादा फायदा होगा लेकिन उत्पादक का फायदा बहुत ही कम मात्रा में होता है ‌‌। आज जरूरत इस बात की थी कि हमारे देश में अनाज की पैदावार कैसे बड़े जिससे बढ़ती हुई जनसंख्या को भरपेट भोजन मिल सके ना कि भंडारण और मार्केटिंग की। साथ ही अनाज की पैदावार का उचित मूल्य किसानों को कैसे मिले। इन तीन नए कृषि कानूनों में इस बात की संभावना कम है की पैदावार कैसे बढ़ाई जाए।

सबसे विचारणीय बिंदु यह है कि किसान कभी भी मार्केटिंग नहीं कर सकता। उसके पास खेती किसानी के बाद इतना समय नहीं बचता है कि वह अपने आनाज की मार्केटिंग कर सके। इसलिए इन तीन नए कृषि कानूनों के बाद भी किसानों की आय दोगुनी होने की संभावना बहुत ही कम दिखती है।

किसानों द्वारा पैदा किए गए अनाज की मार्केटिंग पूंजीपति करेंगे तो उसका फायदा कुछ चंद लोगों को ही मिलेगा ना कि किसानों को। आज ही देख लीजिए धान की कीमत किसान को 800 से ₹900 कुंटल मिल रही है जबकि आम आदमी को चावल ₹25 किलो मिल रहा है इसमें फायदा मार्केटिंग करने वालों का हुआ ना कि किसान का। अब यह बताइए क्या इसी तरह किसान की आय दोगुनी हो जाएगी।


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