कहा गया है कि सबसे बड़ा पाप झूठ बोलना है, लेकिन राजनीतिक दल शपथ पत्र देकर झूठ बोलते हैं। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में घोषणा पत्र में कई वादे किए थे। उन वादों पर खरी नहीं उतरी है। जनता के साथ चैटिंग की है, इसलिए बीजेपी ने घोषणा पत्र देकर जनता से झूठ बोला है। कहा तक की भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लगेगी काला धन वापस आएगा हर साल 2 करोड़ रोजगार दिए जाएंगे। किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। महंगाई पर लगाम लगेगी। किसानों की ऐसी दोगुनी हुए कि विगत तीन माह से किसान तीन कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली बार्डर पर भीषण ठंड में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन को दबाने और कुचलने के लिए कई तरह के कुचक्र रचे गये। कैननवाटर आंसू गैस के गोले दागे गये। सड़क पर बड़े-बड़े गढडे खोदे गये, लेकिन किसान अपनी मांगों को लेकर आगे बढ़े और सरकार द्वारा रचित कुचक्र को कुचलते चले गए।
अभी जल्द ही बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़े-बड़े वादे किए थे। कहा था कि हम 10 लाख रोजगार देंगे। नौकरी देंगे साथ ही बिहार के लोगों को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन देंगे। अब जब बिहार में सरकार बन गई। तब इन वादों का बीजेपी के लिए कोई मायने नहीं है। बंगाल चुनाव में गृहमत्री अमित शाह ने कहा कि सरकार बनने पर बंगाल के किसानों को 18 हजार रूपये हर साल दिए जाएंगे, लेकिन जनता लुभावने वादों में आएगी कि नहीं यह तो समय ही बताएगा। यहां यह बताना जरूरी है कि बाकी प्रदेशों की जनता ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुत की सरकार दी। अब उनको फ्री में कोरोना वैक्सीन और किसानों को 18 हजार रूपये क्यों नहीं।
लोगों का कहना है कि बीजेपी जब चुनाव होता है तो बड़े-बड़े वादे करती है। जिस प्रदेश में चुनाव होता है वहां सौगाते बांटने की बात कहती हैं लेकिन अन्य प्रदेशों की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सरकार दी। अब सत्तारूढ़ दल अर्थात बीजेपी गरीब जनता के साथ छल कपट क्यों कर रही है। यदि 18 हजार रूपये बंगाल में और कोरोना वैक्सीन बिहार में फ्री दी जा सकती है तो देश के अन्य करोड़ों लोगों को क्यों नहीं दी जा सकती हैं। क्या उसने बीजेपी को वोट नहीं दिया था। साथ ही जब चुनाव आते हैं तब ईडी का शिकंजा लोगों पर कसना शुरू हो जाता है। चुनाव के बाद फिर वही ढाक के तीन पात दिखाई पड़ते हैं। चुनाव के पहले जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त थे उन पर बीजेपी क्यों दरियादिली दिखाते रहती है। सारी कार्रवाई चुनाव के समय ही क्यों करती है। यह सब जनता के साथ दोहरी राजनीति कब तक चलती रहेगी।
जनता ने वैश्विक महामारी में लगभग ढाई माह का लॉकडाउन की परेशानी को बर्दाश्त किया, थाली बजाई। मोमबत्ती जलाई। उसके बाद भी कोरोना के मरीज बढ़ते चले गए। जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को लगा कि अब करोना खत्म कर दिया जाए तब एक झटके में लाकडाउन हटा दिया और उसके बाद से कुछ ही दिन में प्रदेश से करोना मरीजो की संख्या लगभग न के बराबर हो गई। उधर दिल्ली बॉर्डर पर किसान 3 नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं उनका कहना था कि हम लोगों को कोरोना का संक्रमण नहीं सकता। जबकि हम लोग न माक्स पहना है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, लेकिन करोन नहीं होगा, क्योंकि कोरोना का सिर्फ भय दिखाया जा रहा है। देश की आर्थिक स्थिति करोना कॉल के पहले भी डामाडोल हो चुकी थी। करोना काल में ही तीन नए कृषि कानून लाए गए जो किसानों के हित में नहीं हैं। यह तो सिर्फ अपने दो तीन साथियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं। हम तब तक घर वापस नहीं जाएंगे, जब तक तीनों नए कृषि कानून वापस नहीं हो जाएंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर कानून नहीं बन जाता। अब तो किसानों काे सरकार की हर बात झूठ लगने लगी है। देश में प्रधानमंत्री को बहुत ही विश्वास से जनता मानती थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वादे किए थे उन पर खरी नहीं उतरी।
किसानों की आय दोगुनी करने के बजाए किसानों के लिए 3 नए कृषि कानून लाकर उनको फांसी का फंदा दिया है। लगभग 3 माह से दिल्ली बॉर्डर पर लगातार किसानों का आंदोलन जारी है। इस बीच ढाई सौ किसान कृषि कानूनों को वापस कराने की आस में शहीद हो गए हैं, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रहेगा। इतनी निर्दय सरकार हो जाएगी ऐसा किसानों ने कभी सोचा नहीं था। यदि सरकार जल्दी ही तीनों नए कृषि कानून वापस नहीं लेती है और न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर कानून नहीं बनाती है तो आंदोलन और तेज होगा, जिसका खामियाजा बीजेपी को आने वाले चुनाव मे भुगना पड़ेगा।

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