किसानों के समर्थन में कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक ने अपने पद से दिया इस्तीफा



कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक किसानों की समस्याओं को लेकर के काफी चिंतित रहे हैं। कहां की लगभग  साढ़े तीन साल  पूर्व गठित कृषक समृद्धि आयोग की एक बैठक न होने से नाराज धर्मेंद्र मलिक ने सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। धर्मेंद्र मलिक ने मुख्यमंत्री को भेजे गए त्याग पत्र में आग्रह किया है कि वे कृषि कानूनों पर किसानों की चिंता से केंद्र सरकार को अवगत कराएं।

कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि किसान हितों के लिए 10 नवंबर 2017 को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया गया था उन्हें आयोग में गैर सरकारी सदस्य और किसान संगठन भाग्य के प्रतिनिधि के तौर पर नामित किया गया था धर्मेंद्र मलिक दुख जताते हुए कहा कि पिछले 3 मां से कृषि कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली बॉर्डर पर कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर गुजार दी‌। लेकिन केंद्र सरकार कोई समाधान नहीं निकाल पाई।

धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि कृषि कानूनों जैसे गंभीर विषय पर भी आयोग की ओर से केंद्र को सुझाव नहीं भेजे गए इसको लेकर प्रदेश के किसानों की राय जानने के लिए संवाद भी नहीं किया गया आयोग का गठन जिस उद्देश्य को लेकर किया गया था आयोग उसे पूरा नहीं कर पाया है धर्मेंद्र मलिक ने त्यागपत्र भेजते हुए उम्मीद जताई है कि प्रदेश सरकार 3 कृषि कानूनों पर किसानों की चिंताओं से केंद्र सरकार को अवगत कराएगी।


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उधर बसपा नेता लालजी वर्मा ने कहा कि खेती की लागत बढ़ने और फसलों के उचित दाम नहीं मिलने से किसान घाटे में हैं। 2014 से पहले डीएपी खाद की एक बोरी रूपए 475 की थी जो अब बढ़कर 1220  रूपए में मिलती है । डीजल के दाम 60 से 82 रूपए लीटर और बिजली दरें 55 से 250 रूपए प्रति हास पावर हो गई हैं। गन्ना मूल्य 4 साल में मात्र रूपए 10 प्रति कुंटल बढ़ाया गया है जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में ₹110 प्रति कुंतल गन्ने का मूल्य बढ़ाया था।



उधर 3 दिन से पूसा कृषि विज्ञान केंद्र मेले का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार ने किसानों को मंडी के बाहर उपज की खरीद बिक्री पर किसी भी तरह के कर से माफी दी है। किसानों को बिना कर के कहीं भी उपज बेचने की अनुमति दी और कानूनी बंदिशों से आजादी दी। तो इसमें गलत क्या है। राज्य सरकारें कर लगा रही हैं उनके खिलाफ तो कोई कुछ नहीं बोल रहा है । आंदोलनकारी किसान भाई भी उन लोगों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं जिन्होंने किसानों की फसल पर कर माफ किया है।





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