राम नाम की मार्केटिंग करने वालों का राम नाम सत्यः सपा कार्यकर्ता


राम चरित मानस के अनुसारः झूठ मसकरी जे जाना। कलयुग गुनवंत बखाना।।

जग में सुंदर हैं दो नाम कृष्ण कहो या राम, सत्ता पक्ष ने जिस तरह बंटवारे की राजनीति की है। जनमानस अर्थात आम आदमी को तो बांटा जा सकता है, लेकिन ईश्वर को बांटा नहीं जा सकता है। सत्तापक्ष ने ईश्वर को भी बांटने की भरपूर कोशिश की है। दशकों से यह देखने में आया है की जय श्री राम तो बोला जाता है लेकिन कृष्ण का नाम नहीं लिया जाता है। सत्ता पक्ष का नारा था जय श्री राम, यहां पर यह बताना बहुत जरूरी है कि हमारे सनातन परंपरा के अनुसार देवताओं की पूजा करने से पहले देवियों की पूजा होती चली आई है।  महापुरुष य धर्म की स्थापना के लिए अपनी इच्छा से अवतार लेने वाले सभी का नाम लेने से पहले देवियों का नाम जोड़ दिया गया है।  जय सियाराम, राधे राधे आदि। आज तक देखा सुना और समझा है की जब कोई मंत्र दिया जाता है तो धीरे से कान  में फूंक दिया जाता है। हमारी परंपरा का मानना है कि देवी-देवता गूंगे-बहरे नहीं है। मुस्लिम धर्म के अनुसार लाउडस्पीकर लगाकर चिल्ला चिल्ला कर पूजा  नहीं करते हैं। जय श्री राम एक प्रायोजित नारा है न कि मंत्र, मंत्र तो राम और जय सियाराम है जो धीरे से बोला जाता है। मंत्र को जपने से किसी की भावना आहत  नहीं होती। इसमें कोई उत्तेजना नहीं है। सिर्फ आस्था, श्रद्धा, विश्वास है। जन्म और मृत्यु तो ईश्वर के हाथ में है। दोष के अनुसार ही ईश्वर द्वारा दोषी को दंड मिलता है। यदि निज स्वार्थ लिए  साम, दाम, दंड भेद अपनाया गया तो जल्द ही राम नाम सत्य हो जाएगा।

रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम ने खुद कहा था निर्मल जन मन शो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा। अर्थात ईश्वर को छल, कपट करने वाला व्यक्ति पसंद नहीं है। ईश्वर की भक्ति और शक्ति उसी को प्राप्त होती है जो मन से निर्मल हो। निज स्वार्थ के लिए झूठ, पाखंड, आडंबर किया जा रहा है जो ईश्वर को कतई पसंद नहीं है। ऐसे लोग मानव धर्म को शर्मसार करते हैं और इन लोगों के पास भक्ति नहीं सिर्फ निज स्वार्थ है। भक्त वही हो सकता है जो संसार के माया, मोह से दूर हो और मानव समाज और समस्त प्राणियों के प्रति आदर भाव रखता हो। साथ ही समाज को नई दिशा देकर धर्म की स्थापना करने में अपना जीवन व्यतीत कर रहा हो।

रामचरितमानस के अनुसार जब भगवान राम का नामकरण किया गया था उस समय जय श्री राम नहीं लिखा गया था। कहां गया, सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक विश्रामा। राम अपने आप में परिपूर्ण मंत्र है। मंत्र के आगे पीछे कुछ भी जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता। अर्थात राम के आगे जय श्री लगाने से राम नाम को सूरज को दिया दिखाने के समान है। राम नाम मंत्र जाप धीरे-धीरे धारण किया जाता  है, जिसमें आस्था, विश्वास और श्रद्धा पूरी तरह निहित है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ लोगों को राम से दिक्कत है। संसार में कोई ऐसा प्राणी नहीं है जिसको राम से दिक्कत हो। राम अर्थात ईश्वर सबको अपने में समा लेते हैं। सबको अपना बना लेते हैं। ईश्वर की माया से कोई आज तक बच नहीं पाया है। बिना ईश्वर की मर्जी के पत्ता तक नहीं हिलता है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो करता हूं मैं करता हूं। तु सिर्फ कर्म करो। स्वयं विचार कीजिए आदि आदि। ईश्वर ने किसी को अपनी ठेकेदारी करने का अधिकार नहीं दिया है। अर्थात ईश्वर कोई वस्तु नहीं है जिसकी मार्केटिंग की जाए। मार्केटिंग तो खराब वस्तु को बेचने के लिए की जाती है। ईश्वर शक्ति तो सर्वोपरि है। मनुष्य रूपी नश्वर शरीर से ईश्वर को बांधा नहीं जा सकता है। ईश्वर शक्तिी तो प्रेम की भूखी है। इस अदृश्य महान शक्ति को प्रेम से ही बांधा जा सकता है। वह चाहे जिस जाति धर्म का क्यों न हो। यहां यह कहना जरूरी है कि निज राजनीतिक स्वार्थ के लिए उस अदृश्य महान शक्तिी की मार्केटिंग करना बंद कर दें। रामचरित मानस में लिखा है कि बिनु पग चलैं, सुनै बिनु काना। बिनु कर कर्म करै विधि नाना।।

जो लोग राम की ठेकेदारी कर रहे हैं उससे समाज में विद्वेष की भावना बहुत तेज फैल रही हैं और वह दिन दूर नहीं जब ईश्वर को लोग बांटकर अपनी-अपनी जाति धर्म के अनुसार पूजा करेंगें। कुछ लोग राम को पूजेंगे तो कुछ लोग कृष्ण को तो लोग रावण को तो कुछ लोग जयभीम आदि आदि नामों की पूजा करेंगे। उस समय धर्म की हानि हो चुकी होगी और प्राणि जगत के लिए खतरा मंडराने लगेगा। इसका श्रेय इन धर्म के ठेकेदारो को जाएगा जो निज स्वार्थ के लिए ईश्वर की मार्केटिंग कर रहे हैं।



Post a Comment

please do not comment spam and link

और नया पुराने