लखनऊः वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर अब तक आरोप लगते चले आ रहे हैं। कारण चाहे जो भी मौतों का सिलसिला अब तक नहीं थमा है। स्वयं विचार कीजिए कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते टेªन में लगी आग से झुलसकर 59 कारसेवकों की मौत हो गई। 2002 में गुजरात में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में तीन दिन तक चली हिंसा में 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए। 223 लोग लापता हो गए। तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर जनवरी में भीषण ठंड के चलते किसान खुले आसमान के नीचे रात गुजारने के लिए मजबूर हैं। अब तक 60 से ज्यादा किसानों की जान चली गई हैं। अमेरिका में मरने वालों पर मोदी शोक संवदेना व्यक्त करते हैं। इधर अन्नदाता जो अब 60 से ज्यादा शहीद हो गये हैं एक बार भी मोदी जी दिल नहीं पसीजा। भारत देश में यदि दुश्मन भी जान चली गई हो तब भी आम आदमी का दिल कचोट जाता है। किसान हाय हाय कर रहा है। यह जरूर है कि गरीब की हाय बहुत ही खतरनाक होती है।
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिकए 2014 से लेकर 13 फरवरी 2019 तक 853 जवान शहीद हुए हैं। वहीं 2381 आतंकवादी मारे गए हैं। इसी समय में 2399 आतंकवादी घटनाएं हुई हैं, जिसमें 1213 नागरिकों की मौत हुई है। 14 फरवरी 2019 कोए जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भारतीय सुरक्षा कर्मियों को ले जाने वाले सी०आर०पी०एफ० के वाहनों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ। जिसमें 45 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गयी थी।
27 फरवरी की सुबह साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंचते ही ट्रेन के एस-6 कोच में भीषण आग लगी थी। कोच में ज्यादातर कारसेवक थे जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। आग से झुलसकर 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना को बड़ा राजनीतिक रूप दे दिया और गुजरात के माथे पर एक अमिट दाग लगा दिया। हादसे के समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। घटना को एक साजिश के तौर पर देखा गया। शाम में ही मोदी ने बैठक बुलाई। बैठक को लेकर तमाम सवाल उठे। आरोप लगे कि बैठक में (क्रिया की प्रतिक्रिया) होने की बात सामने आई। ट्रेन की आग को साजिश माना गया। ट्रेन में भीड़ द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगाने की बात गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने भी मानी। अगले ही दिन मामला अशांत हो गया। 28 फरवरी को गोधरा से कारसेवकों के शव खुले ट्रक में अहमदाबाद लाए गए। ये घटना भी चर्चा का विषय बनी। इन शवों को परिजनों के बजाय विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया। जल्दी ही गोधरा ट्रेन की इस घटना ने गुजरात में दंगों का रूप ले लिया।
2002 में गुजरात में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान आरोप लगते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं की। उन्होंने पुलिस दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई न करने के आदेश दिए। दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था जिसने अपनी रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दे दी थी। नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई स्पेशिक आरोप नहीं था और न ही है। पीड़ित जकिया जाफरी ने साजिश की बात कही थी और उस दायरे में नरेंद्र मोदी का नाम लिया था। और कहा कि इसमें इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए और जांच होनी चाहिए। तीन दिन तक चली हिंसा में 790 मुस्लिम और 254 हिंदू मारे गए। 223 लोग लापता हो गए।
14 फरवरी 2019 को, जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भारतीय सुरक्षा कर्मियों को ले जाने वाले सी०आर०पी०एफ० के वाहनों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ। जिसमें 45 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गयी थी। यह हमला जम्मू और कश्मीर के पुलवामा ज़िले के अवन्तिपोरा के निकट लेथपोरा इलाके में हुआ था ।आंकड़ों पर गौर करें तो 2014 से लेकर 13 फरवरी 2019 तक 853 जवान शहीद हुए हैं। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से लेकर 13 फरवरी 2019 तक 853 जवान शहीद हुए हैं। वहीं, 2381 आतंकवादी मारे गए हैं। इसी समय में 2399 आतंकवादी घटनाएं हुई हैं, जिसमें 1213 नागरिकों की मौत हुई है।
तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर जनवरी में भीषण ठंड के चलते किसान खुले आसमान के नीचे रात गुजारने के लिए मजबूर हैं। इस ठंड में किसानों को अपनी जान बचाना मुश्किल है। लेकिन जर-जमीन का मामला है, इसलिए किसान अपनी जमीन और पीढ़ी को बचान के लिए अपनी जान की परवाह नहीं कर रहे हैं। ठंड के चलते अब तक 50 से ज्यादा किसानों की जान चली गई हैं। कई किसान नए कृषि कानूनों के विरोध में आत्महत्या कर चुके हैं। इसके बाद भी सरकार तीन नए कृषि वापस लेने के लिए तैयार नहीं दिखती है। अब तक किसान और सरकार के बीच सात दौर की वार्ता हो चुकी है जो बेनतीजा रही है। अब 8 जनवरी को फिर वार्ता होगी, लेकिन किसानों के पक्ष में सरकार मान जाएगी, इसके बहुत ही कम असर दिखाई दे रहे हैं। फिर तारीख ही मिलेगी। यह तारीख पर तारीख मिलने का सिलसिला कब तक चलेगा यह कहना कठिन है।
2 तारीख के रात 11 बजे से बारिश के कारण किसानों के तंबूओं के अंदर पानी चला गया और सारे बिस्तर गीले हो गए। जिससे आंदोलित किसानों के सामने भयंकर ठंड में रात गुजारना और भी कठिन हो गया। उनके गीले बिस्तर सुखना नामुमकिन है। यदि बारिश नहीं थमी तो ठंड के चलते किसानों की जान जाने का खतरा और बढ़ जाएगा। इसके बाद भी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर दी है। जबकि पूरे भारत और विदेशों से किसानों का समर्थन करने वाले लोगों का मानना है कि सरकार को चाहिए किसानों की मांगे मान ले। साथ ही लोगों ने कहा कि किसान आंदोलन में जान गवाने किसानों को सरकार शहीद का दर्जा दें।

एक टिप्पणी भेजें
please do not comment spam and link