सरकार की साजिश कामयाब लाल किले पर फहराया धार्मिक झंडा



 

3 नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के धरने को बदनाम करने के लिए सरकार में बैठे जिम्मेदार नेता मंत्री कई बार यह कह चुके हैं कि यह आंदोलन किसानों का नहीं इसमें खालिस्तानी, पाकिस्तानी समर्पित लोग शामिल हैं। अब समझ में आया है कि यह नेता मंत्री बिल्कुल सही कह रहे थे कि इसमें खालिस्तानी लोग शामिल हो गए थे जिनको किसान संगठन नहीं पहचान पाए थे।

यहां यह बताना जरूरी है कि लोग देशभक्त और नकली  है देशभक्तों में पहचान कर सकें बुलेट ट्रेन जापान से राफेल फ्रांसे ठेका चीनी कंपनियों को फिर भी स्वदेशी और यह देश भक्ति पूरी जनता चीन के उत्पादों का बहिष्कार कर रही है लेकिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी चीन पर अपनी मेहरबानी निछावर किए हुए हैं। विकास दो-तीन महीने के अंदर चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 101 घर का गांव बसा लिया है दूसरी तरफ ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाया है। क्या इन सब की प्रधानमंत्री को जानकारी नहीं है। यदि जानकारी है तो प्रधानमंत्री जी देश के सामने इनसे उबर पाने के लिए क्या योजना है। आज देश में सबसे विकराल समस्या बेरोजगारी की है शिक्षा की लचर व्यवस्था को लेकर है अर्थव्यवस्था जितनी डामाडोल हो गई है वह सब जानते हैं यहां तक कि अधिकांश लोगों की नौकरी पर खतरा बन गया है। इससे देश कब ऊबर पाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

 यहां पर यह सवाल लाजिमी है कि जब सरकार को पता था कि इसमें खालिस्तानी लोग हैं तो पहले से चिन्हित कर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की। क्या यह योजनाबद्ध तरीके से लाल किले पर झंडा फहराने के लिए इनको सरकार की तरफ से समर्थन मिला था। यहां पर यह सवाल पूरी तरह जायज है कि सरकार को जब पहले से मालूम था कि पुलवामा में हमला हो सकता है तो सरकार ने जवानों को बचाने के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की। जब यह मालूम था कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी समर्पित लोग शामिल हो गए हैं तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की यह सरकार की पूरी तरह नाकामी है या यह कहें कि उनकी इच्छा के अनुसार इन घटनाओं को अंजाम दिया गया। 

दीप सिद्दू कोई साधारण किसान नहीं है जो मोदी जी और अमित शाह और सनी देओल के साथ अपनी फोटो खिंचवा सकता है, जहां आम आदमी पहुंच तक नहीं सकता। चुनाव के समय दीप सिद्धू बीजेपी के एजेंट की तरह काम किया था। दीप सिद्धू ने किसान संगठनों की बात ना मानकर अपने लोगों के साथ निर्धारित रूट छोड़कर लाल किले पर पहुंचना और वहां धार्मिक झंडा फहराना यह उनकी खुद की प्रायोजित चाल थी, इस चाल को भोले-भाले किसान इसनहीं समझ पाए और सिद्धू के साथ लाल किले तक पहुंच गए।

सबसे बड़ी बात यह है कि किसान मेहनत करना जानता है वह छल, कपट, साजिश करना कतई नहीं जानता। इसीलिए 3 नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने गांधीगिरी शांतिपूर्ण सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाने की हर बार कोशिश करते रहे हैं। इस घटना को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के योगेंद्र यादव ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि किसान खोया हुआ विश्वास फिर हासिल कर लेंगे। यदि ऐसी ही नैतिक जिम्मेदारी सरकार ले ले तो क्षण भर में तीनों नए कृषि कानून वापस हो जाएंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी पर कानून बन जाएगा साथ ही किसानों का आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा। लेकिन जिन लोगों को कुर्सी प्यारी है उनको नैतिक जिम्मेदारी जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते हैं। ऐसे लोगों में मानवता का धर्म कुछ भी नहीं है। जब मानवता धर्म खत्म हो जाता है तो कोई धर्म नहीं बचता है ऐसा हमारे धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि मानव धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। 

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