मंगलवार को आंदोलित किसान और सरकार के बीच वार्ता विफल

आंदोलित किसान

लखनऊः नए कृषि कानूनों को लेकर मंगलवार आंदोलित किसान और सरकार के बीच वार्ता विफल रही। किसानों का मानना है कि जब तक तीनों कृषि कानों को वापस नहीं किया जाता तब आंदोलन अनवरत जारी रहेगा।  किसानों से चर्चा के दौरान सरकार ने कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए समिति बनाने का सुझाव रखा, लेकिन किसानों ने इस प्रस्‍ताव को नहीं माना है। 


 

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर जमा किसानों की मदद के लिए हर कोई आंदोलित किसानों की हरसंभव मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को लोग लस्सी, दूध और केले पहुंचा रहे हैं। खालसा एड और गुरुद्वारों की तरफ से लंगर की व्यवस्था की गई है। कहा गया है कि चिन्ता न करें कहीं, आपदा हो जाए तो गुरुद्वारे से लंगर वहां भी पहुंच जाता है


 

    केंद्र सरकार ने समिति बनाने का सुझाव दिया। इस समिति में किसान, कृषि विशेषज्ञ और सरकार के प्रतिनिधि होंगे। किसानों ने आरोप लगाया कि पूंजीपति उनकी जमीन हड़प लेंगे। इस समिति बनाने का समय नहीं है। किसान नए कृषि कानूनों को शीघ्र हटाने की मांग कर रहे हैं। जब तक नए कृषि कानून वापस नहीं होंगे आंदोलन जारी रहे। 


 

   भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक शिरोमणि अकाली दल ने केंद्र सरकार और राजग से दूरी बना ली। इसके बाद सोमवार को आरएलपी के मुखिया और सांसद हनुमान बेनीवाल ने नए कानूनों को वापस नहीं लेने पर राजग से हटने की धमकी दी। अब मंगलवार को जेजेपी ने किसानों की मांग का समर्थन करते हुए नए कानूनों में एमएसपी जारी रखने का लिखित आश्वासन देने की मांग की। भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि हरियाणा में उसकी सरकार जेजेपी की बैसाखी पर टिकी है।


 

जेजेपी के अध्यक्ष अजय चौटाला ने कहा कि सरकार को किसानों की समस्या का शीघ्र हल निकालने का ठोस कदम उठाना चाहिए। देश के अन्नदाता सड़कों पर परेशान हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को अपना दिल बड़ा करते हुए किसानों की मांगों को स्वीकार करना चाहिए। किसानों की नाराजगी को देखते हुए अकाली दल ने राजग और मोदी सरकार से नाता तोड़ा। चूंकि आंदोलनकारियों में जाट बिरादरी मुख्य रूप से शामिल है, और यही जेजेपी के साथ आरएलपी का मुख्य वोट बैंक है। 


 

किसान आंदोलन का दायरा लगातार बढ़ने और सहयोगी दलों के किसानों के साथ खड़े होने से सरकार की चिंता बढ़ी है। इससे पहले किसानों के अपने अपने राज्यों में प्रदर्शन और रेल पटरियों पर कब्जे के बावजूद सरकार और भाजपा निश्चिंत थी। मगर आंदोलन का फलक लगातार बड़ा होने और सहयोगियों की नाराजगी बढ़ने के कारण सरकार दबाव में है। इसी दबाव के कारण सरकार ने अचानक मंगलवार को किसान यूनियन के प्रतिनिधियों को बातचीत का न्यौता दिया।  


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