लखनऊः किसान संगठनों और सरकार के बीच नए कृषि कानूनो को लेकर चैथे दौर की वार्ता लगभग बेनतीजा रहने के बाद संगठनों ने बड़ा ऐलान किया है। आंदोलित किसान संगठनों ने कहा कि यदि सरकार अड़ियल रवैया नहीं छोड़ती और नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। इसके साथ ही शुक्रवार को केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि किसानों की मांगें शीघ्र नहीं मानी गई तो आठ दिसंबर को भारत बंद करेंगे।
नए कृषि कानूनों को लेकर विगत आठ दिनों से आक्रोशित किसान संगठनों ने दिल्ली के बार्डर को घेर लिया है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि यदि केंद्र सरकार शनिवार की वार्ता के दौरान उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करती है, तो वे नए कृषि कानूनों के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज करेंगे। हरविंदर सिंह लखवाल ने कहा कि हमने आठ दिसंबर को (भारत बंद) का निर्णय किया है। इस दौरान सभी टोल प्लाजा को अपने कब्जे में कर लेंगे। कहा कि यदि नए कृषि कानूनों को सरकार शीघ्र वापस नहीं लेती है तो आने वाले दिनों में दिल्ली की शेष सड़कों को घेरने की योजना बनाई है।
राजधानी दिल्ली के बॉर्डर बिंदुओं पर पंजाब-हरियाणा के साथ ही अन्य राज्यों के किसानों का नौवे दिन भी प्रदर्शन जारी रहा। गुरूवार को किसान नेताओं और सरकार के बीच बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था। किसान संगठनों को आशंका है कि इन नए कृषि संबंधी कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त करने की योजना है। किसानों को बड़े उद्योगपतियों और बड़े औद्योगिक घरानों के सहारे जीवनयापन करना पड़ेगा। भाकियू के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों को आशा है कि पांच दिसंबर को पांचवें चरण की वार्ता के दौरान सरकार उनकी मांगें मान लेगी। यदि सरकार मांगे नहीं मानती है तो हम विरोध प्रदर्शन और तेज कर देंगे।
किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि एमएसपी हमारी बुनियादी जरूरत है। अब किसान आंदोलन के साथ ही जनआंदोलन बन चुका है। सरकार को किसानों की बात मानना ही पड़ेगा। सरकार के साथ शनिवार को किसान संगठनों के साथ होने वाली बैठक के लिए किसान रणनीति तैयार कर रहे हैं। अभी तक आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच कई दौर की बैठक में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। शनिवार को फिर से दोनों पक्षों के बीच बैठक होगी।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गुरुवार की बैठक में किसान संगठनों की ओर से नए तीन कृषि कानूनों को लेकर आपत्तियों पर विचार किया गया है। किसानों की सबसे बड़ी मांग एमएसपी जारी रखने को लेकर कानूनी प्रावधानों करने की है। इसके लिए सरकार कार्यकारी आदेश का रास्ता अपना सकती है। ऐसा करने से किसानों की चिंता दूर हो जाएगी और मंडियों के साथ ही खुले बाजार में कृषि उपज एमएसपी पर बिकने का रास्ता खुल जाएगा। कांटैªक्ट फार्मिंग में किसान और कंपनी के बीच विवाद होने पर एसडीएम (डीएम) कोर्ट के अलावा किसानों को अदालत का दरवाजा खटखटाने का विकल्प रहेगा। इसके लिए कानून के नियमों में बदलाव किया जा सकता है। आवश्यक खाद्य नियम में खरीद की सीमा हटाने को लेकर पैन कार्ड के अलावा कंपनी को पंजीकरण करना अनिवार्य होगा। इसके अलावा खुले बाजार में टैक्स लागू करने अथवा राज्य सरकार से सरकारी मंडियों मे टैक्स समाप्त करने की अपील कर सकती है। इसके लिए सरकार पहल कर सकती है।
इसके अलावा संशोधित बिजली विधेयक, पराली पर जुर्माना, किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने जैसी मांगों को मान लेने की संभावना है। अधिकारी ने बताया कि तीनों कृषि कानून में संशोधनों के जरिए किसानों की मांग पूरी कर किसानों से आंदोलन समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा। लेकिन किसान संगठन पहले ही कह चुके हैं कि पहले संसद का विशेष सत्र बुलाकर तीनों कृषि कानून रद्द किए जाएं। इसके बाद एमएसपी को लेकर नया कानून बनाया जाए जिसमें किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व हो। सरकार इसके लिए तैयार नहीं है, जिससे टकराव व आंदोलन समाप्त होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
किसान आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें दिल्ली की सीमाओं पर जमे किसानों को हटाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दिल्ली.एनसीआर के सीमावर्ती इलाकों से किसानों को प्रदर्शन से तुरंत हटाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस प्रदर्शन से कोविड.19 के प्रसार का खतरा पैदा हो गया है। साथ ही लोगों को आवागमन में भी भारी कठिनाईयों का सामना करन पड़ रहा है।




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