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| खेती करते अमिताभ बच्चन सलमान खान |
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| खेती करते सलमान खान |
लखनऊः हमारा भारत देश कृषि प्रधान देश है, यहां लगभग 70 फीसद जनसंख्या कृषि पर आधारित है। किसानों को तीन श्रेणी में बांटना लगभग तर्क संगत होगा। प्रथम श्रेणी अर्थात बड़े किसान जिनके पास सैकड़ों बीघे जमीन खेती लायक होती है। उनके पास टैªक्टर के साथ ही खेती के सभी उपकरण होते हैं। खेती में सहायक और किसानों की आय बढ़ाने के साथ उनको पौष्टिक भोजन के लिए दूध देने वाले पशुओं को भी आसानी से पालते हैं। इसके साथ ऐसे किसान अच्छी जिनदगी जीते है।
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| यह है गरीब किसानों की जिंदगी |
दूसरे वो किसान जिनके पास पांच हेक्टेयर से कम जमीन है। ऐसे किसान भी अपना और अपने परिवार का जीवनयापन के लिए दुधारू पशुओं को पालते हैं। ऐसे किसानों के पास दुधारू पशुओं को पालने के लिए पैसा नहीं होता है। जिसके लिए साहूकार या फिर बैंक से कर्ज लेते हैं।
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| पानी के अभाव में सूखती फसल |
तीसरे वह किसान जिनके पास एक या फिर दो बीघे जमीन होती है। ऐसे किसान अपने परिवारीजनों का पेट पालने के लिए दूसरो की खेती अधिया पर लेते हैं या फिर छोटी से छोटी मजदूरी के लिए बंधुआ मजदूर बन जाते हैं। जिनकी मजबूरी का लोग फायदा उठाते हैं।
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| यह है गरीब किसानों की जिंदगी |
इसके अलावा कुछ किसान ऐसे भी होते हैं जिनका खेती किसानी से कोई लेना देना नहीं होता है। ये अपनी ब्लैक मनी को सफेद करने के लिए सैकड़ों बीघे खेती लायक जमीन को खरीद कर बड़े-बड़े फार्महाउस बनाकर छोड़ देते हैं। यदि यही जमीन सही मायने में किसानों के पास हो तो देश में अनाज की उत्पादन और बढ़ जाएगा। जमीन खरीद-फरोख्त का काम नेता-अभिनेता और ब्यूरोक्रेसी भी शामिल है।
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| गरीब किसानों की जिंदगी |
मध्य व लघुसीमांत किसानों के सामने और विषम परिस्थित उत्पन्न हो जाती हैं जब दैवीय आपदा आती है जैसे कम वर्षा, ओलावृष्टि या बाढ़ में सबकुछ बर्बाद हो जाता है। तब ऐसे किसान किसी तरह से अपना और अपने परिवार के भरणपोषण के लिए छोटे से छोटा काम करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यही किसान साहूकार और बैंक का कर्ज देने में पूरी तरह से असमर्थ हो जाते हैं। और कभी-कभी यह स्थिति इतनी बिकराल हो जाती है कि किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
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| खेती करते सोंचते हैं क्या होगा |
सरकारों के अनुसार ऐसे स्थिति से बचने के लिए बीमा आदि योजनाएं चलाई जा रही है। इन योजनाओं में भारी भरकम रकम भी खर्च की जा रही है। सही मायने में पात्र किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए काफी कठिनायों का सामना करना पड़ता है। यहां तक की सुविधा शुल्क चुकाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यदि सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र किसानों को मिला होता तो शायद किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर न होता। सरकारी योजनाएं ज्यादातर कागजों में दिखाई देती हैं या फिर अपात्र लोग इसका फायदा उठाते हैं।
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| तीन नए कृषि कानूनों को लेकर आंदोलित किसान |
आज पूरे देश का किसान तीन कृषि कानूनों को लेकर आंदोलित है और आक्रोशित है। इन किसानों का मानना है कि यदि एमएसपी को लेकर कानून बन जायेगा तो हमारी फसल को एमएसपी से कम दाम पर कोई नहीं खरीदेगा। यदि कोई ऐसा करते पाया जायेगा तो वह दंड का भागीदार होगा। यदि किसान पशुओं का बीमा कराता है तो पशु हानि के समय उसको बिना किसी भागदौड़ के किसान को उसकी भरपाई करने के लिए बीमा कंपनी पूरी तरह उत्तरदायी होगी। यदि बीमा कंपनी ऐसा नहीं करती है तो उस पर कठोर कार्रवाई का प्राविधान होगा और दंडात्मक कार्रवाई होगी।
आज किसान आंदोलन के समय कुछ ढ़ोगी किसान जो खेती-किसानी को विस्तार से नहीं जानते हैं कि खेत में कितना बीज पड़ता है और कौन सी फसल कब बोई जाती है वह तीन नए कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। साथ ही किसान कर्जमाफी को गलत ठहराते हुए कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि किसानों का कर्जा न माफ करे। ऐसे किसान विरोधी लोगों को जान लेना चाहिए कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों का कर्ज अर्थात एनपीए माफ करना उचित है जो लग्जरी गाड़ी में घूमते हैं। किसान के पास तो पहनने के लिए कपड़े और पैर में जूते तक नसीब नहीं होते हैं। ठंड के समय खेत में खाद, बीज, निराई, गुड़ाई और सिंचाई करते हैं। जिनको अच्छे गर्म कपड़ों की जरूरत होती है। लेकिन खरीदने के लिए पैसा नहीं होता है।
यदि अंबानी और अडानी पूरे देश का गेहूं अपनी गोदामों में भर लेंगे और तब तक नहीं बेचेंगे जब तक इन गोदाम मालिकों को भारीभरकम फायदा नहीं होगा। क्योंकि व्यापार फायदे के लिए ही किया जाता है। ऐसे समय में देश में गरीबों के सामने भुखमरी की बिकराल समस्या खड़ी हो जाएगी। उस समय 5-10 किलो मिलने वाला निशुल्क राशन, 10-15 लोगों के परिवार में पूरे माह के लिए पूरा नहीं पड़ेगा। अर्थात भूख से मरने वालों की संख्या में इजाफा होना लगभग तय है। रही बात कांटैªक्ट फार्मिंग की तो कांटैªक्ट हमेशा विवादित रहा है। चाहे संविदा कांटैªक्ट हो या फिर ठेकेदार का। कभी न कभी एक पक्ष की तरफ से कांटैªक्ट का उल्लंघन होता ही आया है। जिससे न्यायालय में मुकदमों की संख्या में इजाफा होना तय है। न्यायालय में वादों के निस्तारण में काफी समय लग जाता है। यहां तक कुछ लोग तारीख पर तारीख से टूट जाते हैं, हार जाते हैं। अंत में घर बैठ जाते हैं। साधनविहीन किसान तो बहुत ही जल्द टूट जाएगा।
आज आंदोलित किसानों को सत्तरूढ़ पार्टी के नेता, मंत्री कई तरह के आरोपों से नवाजा है। कभी खालिस्तानी तो कभी पाकिस्तान परस्त बताया जाता है तो कभी गुमराह किसान बताया जाता है। यहां तक किसानों को अच्छे कपड़े और खाने को लेकर भी कहा गया कि ये किसान नहीं हो सकते हैं। यह तर्क संगत नहीं है। क्योंकि आज किसान का बेटा फौजी है, डाॅक्टर और इंजीनियर बनकर देश की सेवा कर रहे हैं। कई बार सरकार में बैठे जिम्मेदार यह कहते हुए सुना गया है कि कृषि विशेषज्ञ ज्यादा से ज्यादा खेती-किसानी पर जोर दें। इससे संबंधित ही रोजगार करें। जिससे किसानों की आय बढ़े और गांव से शहर की ओर पलायन कम हो सके।








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