बीजेपी के पास चुनाव जीतने के लिए इतने बड़े-बड़े हथियार हैं ! विपक्ष का हर असला उसके सामने मिस हो जाते हैं! चाहे वह आस्था का हो या फिर देश से जुड़ी रक्षा का! आस्था और भावनाओं को जनता के दिलों में बिठाने में बीजेपी पूरी तरह महारत हासिल किए हुए हैं! थर
बीजेपी कभी धर्म के नाम पर चुनाव जीत लेती है तो कभी सेना के नाम पर भावनाओं को जागृत कर! राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को इतनी बार आदिवासी आदिवासी कहा गया कि आज नौबत यहां तक आ गई कि हर आदमी की आदिवासी आदिवासी आदिवासी की तरफ सहानुभूति दिखने लगी है! जबकि हमारी परंपरा रही है, दया हम उन पर ज्यादा करते हैं जो गरीब असहाय होते हैं लेकिन द्रोपदी मुर्मू न तो गरीब हैं और न ही असहाय हैं! द्रौपदी मुर्मू के स्थान पर बहुत सारे ऐसे आदिवासी पुरुष और महिलाएं थी जिनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बीजेपी बनाती तो उनके जीवन स्तर में सुधार हो जाता जबकि द्रोपदी मुर्मू पहले से ही गरीबी के अस्तर से ऊपर उठ चुकी हैं! इसलिए आदिवासी और महिला होने की सहानुभूति की पात्र द्रोपदी मुर्मू नहीं लगती हैं! जबकि शिक्षा और अनुभव में देखा जाए तो विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा किसी से कम नहीं है!
द्रौपदी मुर्मू (जन्म : २० जून १९५८) एक भारतीय महिला राजनेत्री हैं। भारत के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने भारत के अगले राष्ट्रपति के लिये उनको अपना प्रत्याशी घोषित किया हैं। इसके पहले 2015 से 2021 तक वे झारखण्ड की राज्यपाल थीं। उनका जन्म ओड़िशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था।
राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होगी! द्रौपदी मुर्मू को भारत सरकार के द्वारा Z+ सुरक्षा प्राप्त है! भाजपा में रहते हुए कई प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं है, उन्होंने एसटी मोर्चा पर राज्य अध्यक्ष और मयूरभान के भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है! 2007 में मुर्मू को ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए “नीलकंठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था! मई 2015 में, भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में चुना! वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल हैं! वह ओडिशा की पहली महिला और आदिवासी नेता भी हैं, जिन्हें ओडिशा राज्य में राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था!
बीजेपी को जब खुद कुछ देने की नौबत आती है तो पूरी तरह विफल दिखाई देती है! पुलवामा हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेना के प्रति इतनी सहानुभूति दिखाई कि मानो सेना को प्रधानमंत्री भगवान मानते हैं! लेकिन जब एक मौका सेना के जवान को मिला तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा दिल नहीं दिखाया! यदि प्रधानमंत्री चाहते तो देश की बहुत सारी सीटें थी कहीं से से चुनाव लड़ सकते थे और चुनाव जीत जाते हैं! बनारस की सीट सेना के जवान को छोड़ देते! सारी दुनिया देखती कि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी जो कहती है वही करती है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा नहीं किया!
2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा से वाराणसी सीट पर चुनाव लड़े! बीएसएफ से बर्खास्त कांस्टेबल तेज बहादुर यादव, उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशी थे, लेकिन हलफनामे में जानकारी छुपाने का आरोप लगाते हुए चुनाव अधिकारी ने उनका नामांकन रद्द कर दिया था! जिसके बाद तेज बहादुर ने चुनाव आयोग के फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी! लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिसंबर महीने में तेज बहादुर की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वे न तो वाराणसी के वोटर हैं और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उम्मीदवार थे! इसलिए तेज बहादुर का चुनाव संबंधी याचिका दाखिल करने का कोई औचित्य नहीं बनता! तेज बहादुर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है!


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