कुछ अधिवक्ताओं ने यूनियन को भी गुमराह कर समाज में यूनियन का भय बना दिया है, कहा गया है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस
अधिवक्ताओं पर कार्रवाई करने के मामले में एसीपी इंस्पेक्टर तलब
मोहनलालगंज में शुक्रवार को अधिवक्ता अश्वनी सिंह अरुण कुमार ओझा की पिटाई के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर हवलात में डाल दिया था! इस पर अधिवक्ताओं ने शनिवार को थाने का घेराव कर हाईवे जाम कर प्रदर्शन किया तो पुलिस ने 300 अज्ञात अधिवक्ताओं के खिलाफ केस दर्ज किया था इसके बाद अधिवक्ता आंदोलनरत हैं मोहनलालगंज तहसील के अधिवक्ताओं ने मंगलवार को कार्य बहिष्कार के दौरान बुधवार को तहसील में महापंचायत की घोषणा की!
दूसरी तरफ 4 जनवरी को मोहनलालगंज बार एसोसिएशन द्वारा समस्त बार एसोसिएशन और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्यों की संयुक्त आम सभा बुलाई गई है! लखनऊ बार एसोसिएशन में आहूत बैठक में पुलिस के कृत्य की निंदा की गई है तथा आगे की रणनीति के लिए संयुक्त आमसभा में निर्णय लिया जाएगा! लखनऊ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश पांडे और महामंत्री कुलदीप नारायण मिश्र के अनुसार मोहनलालगंज बार एसोसिएशन की ओर से उन्हें पत्र प्राप्त हुआ इसे लेकर मंगलवार को बार एसोसिएशन की बैठक में प्रस्ताव पारित कर कहा गया है कि मोहनलालगंज पुलिस ने वकीलों के साथ मारपीट की एवं उन पर फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया है!
उक्त प्रकरण में पीड़िता अधिवक्ता के साथी अरुण कुमार ओझा ने मंगलवार को हाईकोर्ट में रिट भी दाखिल की जिस पर न्यायालय ने मोहनलालगंज के एसीपी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी और इंस्पेक्टर कुलदीप दुबे को तलब कर सवाल पूछे! जवाब से संतुष्ट न होने पर दोनों पुलिस अधिकारियों को गुरुवार को दोबारा तलब किया गया है! अब देखना यह है कि सरकार पुलिस का पक्ष लेती है या फिर अधिवक्ताओं का! न्याय किसको मिलेगा यह तो आने वाला समय बताएगा!
कुछ अधिवक्ताओं ने आम जनमानस को संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता का अधिकार छीन लिया है! यह चंद लोग यूनियन का दुरुपयोग करते हुए महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार और अवैध कब्जा करते हैं! इनके यूनियन के डर से पुलिस भी बौनी साबित होती है! इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यदि पुलिस कार्रवाई करेगी तो यूनियन हड़ताल कर देगा और पुलिस पर दबाव बनेगा! आज समाज का कोई भी व्यक्ति विशेष या फिर अनैतिक कार्य जुड़ा गुंडा बदमाश भी अधिवक्ताओं के प्लाट और मकान पर कब्जा नहीं करता है! अधिवक्ताओं के खिलाफ हक और हुकूक की लड़ाई भी लड़ने को तैयार नहीं है ऐसा माहौल समाज में बना दिया गया है!
दूसरी तरफ समाज के बहुत सारे लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि अमुक अधिवक्ता ने हमारे प्लाट पर कब्जा कर लिया है हमें रास्ता नहीं निकलने दिया जाता है और हम गरीबों की महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है लेकिन पुलिस अधिवक्ता होने के कारण कार्रवाई नहीं कर रही है! भय बस पीड़ित न्यायालय की शरण में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है क्योंकि उसको पता है कि वहां तो अधिवक्ताओं का संगठन है इसलिए न्याय मिलना बहुत मुश्किल है और बेइज्जत ही होना पड़ेगा!
ऐसा ही एक मामला लखनऊ के ठाकुरगंज थाना का है जहां अधिवक्ता शैलेंद्र निगम ने रोड पर समरसेविल कराकर रोड बंद कर दिया है! इतना ही नहीं महिलाओं के साथ छेड़खानी भी की और मीडिया को भी काम नहीं करने दिया जिसकी शिकायत थाने पर की गई! इस पर शैलेंद्र निगम ने 20 अधिवक्ताओं के साथ थाने पहुंचकर दबाव बनाया तब इंस्पेक्टर विजय यादव ने यह कहकर f.i.r. नहीं की तुम लोग जानते हो कि उनका संगठन कितना मजबूत है अभी थाना को घेर लेंगे! इसके बाद पीड़िता ने न्यायालय की शरण ली लेकिन वहां भी मुकदमा लिखने का आदेश नहीं हुआ क्योंकि अधिवक्ता शैलेंद्र निगम ने एडीसी वेस्ट चिरंजीव नाथ सिन्हा जिनको शैलेंद्र निगम अपना रिश्तेदार बताते हैं उनके आदेश पर मोहल्ले के 15 लोगों पर फर्जी और मनगढ़ंत मारपीट का मुकदमा दर्ज करा रखा था! मामले में विवेचक आशीष पीड़ित पक्ष से कह रहे हैं कि हमको मालूम है कि मुकदमा फर्जी मनगढ़ंत है लेकिन हम एफआर नहीं लगा पाएंगे साथ ही पढ़ने लिखने वाले बच्चों को मुकदमे से बाहर कर देंगे! विवेचक आशीष और ठाकुरगंज थाना इंस्पेक्टर विजय यादव का कहना था कि यदि अधिवक्ता पर कार्रवाई करेंगे तो उल्टे पुलिस को मुंह की खानी पड़ेगी!
आज अधिवक्ताओं का भय इतना बढ़ गया है कि कोई भी चाहे जितने भी पड़े पद पर हो वह अधिवक्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने में कामयाब नहीं हो सकता है यदि कहीं ऐसा हो भी जाए तो उस पर इतना दबाव रहेगा कि उसको थक हार कर मुकदमा वापस लेना पड़ेगा!
पुलिस गली मोहल्लों में छोटे-छोटे मामलों में गैंगस्टर की कार्रवाई तक कर देती है लेकिन अधिवक्ताओं के संगठन के आगे बौनी साबित होती है! अधिवक्ताओ की हड़ताल से न्याय प्रक्रिया बाधित होती है जिससे आम जनमानस प्रभावित होता है! हम देश के उन लोगों से कमेंट और क्रिया-प्रतिक्रिया चाहते हैं जो अधिवक्ताओं से पीड़ित हैं! साथ ही बार एसोसिएशन और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से यह उम्मीद करते हैं कि दोनों पक्षों को देखकर ही निर्णय ले जो दोषी हो उस पर कार्रवाई जरूर होनी चाहिए!

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