तूल पकड़ता जा रहा है (Census in Bihar 2023) जातिगत जनगणना का मुद्दा


बिहार में शुरू हुए जातिगत जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी है! याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार न सिर्फ भारतीय संविधान का उल्लंघन कर जातिगत जनगणना करा रही है बल्कि जातीय दुर्भावना पैदा करने की भी कोशिश कर रही है! याचिका में कहा गया है कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है!   राज्य में जाति जनगणना करने के लिए बिहार सरकार की 6 जनवरी, 2022 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार ने अधिवक्ता बरुन कुमार सिन्हा और अभिषेक के माध्यम से दायर की थी। 

23 अगस्त 2021: बिहार के प्रतिनिधिमंडल ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात कर जातिगत जनगणना कराने की माँग की!  

केंद्र सरकार इस बार की जनगणना जाति के आधार पर नहीं करा रही है! ऐसा वो संसद में कह चुकी है!  नेताओं को लगता है कि अब इसमें काफ़ी बदलाव आएगा! संख्या बल के आधार पर जाति को आरक्षण की माँग भी हमेशा उठती रही है और आरक्षण के मुद्दे को एक बार फिर से तूल देना और 'अपर कास्ट' आरक्षण के मुद्दे पर हमेशा विरोध में रहती है! उनको लगता है कि जातिगत जनगणना से आरक्षण बढ़ेगा, जिसका सबसे ज़्यादा नुक़सान 'अपर कास्ट' को होगा! देश में बीजेपी की छवि अपर कास्ट पार्टी की मानी जाती है! 

केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना का प्रस्ताव तकनीकी कारणों का हवाला देकर ठुकरा दिया था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है। इसलिए जनगणना के माध्यम से जाति आधारित जनगणना कराना संभव नहीं है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा था कि आगामी जनगणना में पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) के बारे में जानकारी एकत्र करना संभव नहीं है। ओबीसी/ बीबीसी की गणना को हमेशा प्रशासनिक रूप से जटिल प्रक्रिया माना गया है, पिछड़े वर्ग की की पहचान का स्टैंडर्ड सुनिश्चित करने में व्यावहारिक कठिनाइयां हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में केंद्र ने हलफनामा दायर किया था।

 Census in Bihar 2023 : बिहार में जातिगत जनगणना से इतना तो तय है कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को इसका क्रेडिट जा रहा है। तेजस्वी ने ही सबसे पहले इसकी मांग उठायी थी, जिस पर केंद्र के इनकार के बावजूद नीतीश सरकार ने सहमति दी।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी कई बार बयान दे चुके हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उसने हिस्सेदारी! इतना ही नहीं रूलिंग पार्टी या अन्य विपक्षी दलों ने भी (coste census) जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में हैं लेकिन खुलकर बोल नहीं पा रहे हैं! 


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