पसमांदा मुसलमानों की बात करने से पहले एक नजर, इधर भी डाल लेते हैं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ऐसे ही लोकप्रिय नेता नहीं बने हैं! उनमें वोट बैंक को सहेजने की जानकारी है और उसको अपने पाले में करने की भरपूर कोशिश भी करते हैं! अभी हाल की बैठक में पसमांदा मुसलमानों की जो बात पीएम मोदी जी ने की है उसके बहुत बड़ा मायने है! मुसलमानों की कुल जनसंख्या का पसंदा लगभग 41 फीसद है! यदि इसमें से 20 फीसद लोग अपने पाले में कर लिया तो फिर मोदी को सत्ता से कोई नहीं हटा सकता और बीजेपी 70 साल राज करने के लिए तैयार हैं! फूट डालो राज करो का फार्मूला अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है! यह भी कहा गया है कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती अर्थात हिंदू को साध ले या फिर पसमांदा मुसलमानों को! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से जातिगत जनगणना कराने की मांग की तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया! पसमांदा मुसलमान जो खिचड़ी जाति में आते हैं उनको साधने की भरपूर कोशिश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी लग गई है इसका निष्कर्ष क्या निकलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा!
पिछड़ा वर्ग जो लगभग कुल जनसंख्या का 85 फीसद है उसका प्रतिनिधि करने वाले जनप्रतिनिधि जातिगत जनगणना की मांग जोर शोर से उठा रहे हैं! बिहार में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी! अर्थात 100 पदों में 60 पद अब पिछड़े वर्गों को मिलना चाहिए! माना जा रहा है इस धार को कुंद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने पसमांदा मुसलमानों का मुद्दा उठा दिया है! अब इसमें से कितने लोगों को मोदी जी अपने पाले में कर पाते हैं यह तो समय ही बताएगा लेकिन जातिगत जनगणना की मांग करने वाले नेता इसका भी प्रचार प्रसार कर रहे हैं कि मोदी जी पिछड़ों को आरक्षण न देना पड़े इसलिए वह जातिगत जनगणना नहीं कराना चाहते हैं! यह भी कहा गया है कि बीजेपी सवर्णों की पार्टी है! इसलिए जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं हैं! यदि जातिगत जनगणना होती है तो हिस्सेदारी के अनुसार सरकारी पदों और सरकारी योजनाओं में भागीदारी के अनुसार मांग उठने लगेगी जिससे सवर्ण जो कुल पदों में से लगभग 65% पदों पर कब्जा जमाए हैं उसमें सवर्णों की संख्या घट जाएगी! इसीलिए 1931 की जातिगत गणना के बाद आज तक जातिगत जनगणना नहीं कराई जा रही है और न ही 2011 की जनगणना का डाटा सार्वजनिक किया गया!
कहा जाता है कि मुसलमानों जात -पांत, ऊंच-नीच नहीं है "इस्लाम बराबरी में यक़ीन रखने वाला मज़हब है लेकिन मुसलमानों के भीतर भी जाति व्यवस्था है! तर्क है कि मुसलमानों में जाति का मसला अंग्रेज़ी हुकूमत ने खड़ा किया है! भारतीय मुसलमानों की जाति व्यवस्था के वर्णन के लिए अशराफ़, अजलाफ़ और अरज़ाल जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ करता था! समाजशास्त्री इम्तियाज़ अहमद ने व्याख्या करते हुए कहा, "अशराफ़ यानी उच्च वर्ग जिनके बाप-दादा अरब, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से तालुक्क़ रखते थे! इनमें वो हिंदू भी शामिल हैं जो उच्च जाति के लोग इस्लाम क़ुबूल कर लिया." अर्थात अशराफ़ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है!
अजलाफ़, वो मुसलमान जो निचली हिंदू जातियों से धर्मांतरण कर मुस्लिम मज़हब में शामिल हुए थे!
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर ख़ालिद अनीस अंसारी के अनुसार बंटवारे के समय पलायन करने वालों में बड़ा तबक़ा अशराफ़ मुस्लिमों का था उस हिसाब से पिछड़ों की जनसंख्या अब और बढ़ी होगी!
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन (एनएसएसओ) के अनुसार मुस्लिमों में ओबीसी जनसंख्या 40.7 फ़ीसद है जो कि देश के कुल पिछड़े समुदाय की तादाद का 15.7 प्रतिशत है!
सच्चर कमीशन ने कहा है कि सरकार की ओर से जो लाभ उन्हें मिलने चाहिए थे वो उन तक नहीं पहुंच पा रहे, क्योंकि जहां हिंदू पिछड़ों-दलितों को आरक्षण का लाभ है वहीं ये फ़ायदा मुस्लिम आबादी को नहीं मिल रहा है!
सिलविया वटुक जैसी समाजशास्त्रियों के अनुसार मुस्लिम समाज में जाति जात-पांत की ये व्यवस्था दक्षिण एशिया के मुस्लिमों के भीतर सीमित है!
इसकी वजह ये बताई जाती है कि दूसरे धर्म के लोगों ने, जिनमें बड़ी तादाद हिंदुओं की थी, ने जब इस्लाम क़ुबूल किया तो पुरानी परंपराओं को भी साथ लेते आए, इनमें एक जातिवाद भी है! यह कुछ उसी तरह का तर्क है जैसे हिंदू समुदाय में जातिवाद के लिए एक वर्ग देता रहा है!
जातिगत जनगणना न होने से कोई आंकड़ा तो नहीं है कि पसमांदा समुदाय की संख्या कुल मुस्लिम जनसंख्या में कितनी है, लेकिन 1931 की जनगणना के आधार पर जिसमें अंतिम बार जनगणना में जाति को भी गिना गया था, पसमांदा समाज से जुड़े लोगों का दावा है कि ये संख्या 80-85 फ़ीसद तक होनी चाहिए!
एक संस्था के अली अनवर कर्ता-धर्ता हैं, जिसे एक तरह का प्रेशर ग्रुप माना जा सकता है! ये समूह दलित मुसलमानों के लिए एससी-एसटी की तर्ज़ पर आरक्षण की मांग करता रहा है! पसमांदा समाज का प्रतिनिधित्व करने को लेकर दूसरे कई संगठन भी भारत के दूसरे हिस्से में काम कर रहे हैं!
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