प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर उन्हें बड़े सम्मान से याद किया, लेकिन उनके बनाये संविधान और उसकी मूल भावना के साथ कैसा सुलूक हो रहा है! बीजेपी डा.आंबेडकर के विचारों को दफनाकर उनको मूर्ति में बदलने की कोशिश हुई है। उन्हें हिंदू समाज सुधारक कहने का अभियान चलाया गया ताकि उनकी परंपरा को हिंदुत्व के दायरे में लाया जा सके। यह सब एक रणनीति के तहत हो रहा है ताकि दलित विमर्श और राजनीति में आई धार को कुंद किया जा सके।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाबा साहब डा.भीमराव आंबेडकर के नाम में रामजी जोड़ने का आदेश दिया था। रामजी डॉ.आंबेडकर के पिता का नाम था और महाराष्ट्र की परंपरा के हिसाब से वे अपना पूरा नाम “भीमराव रामजी आंबेडर” लिखते थे। यह वैसा ही जैसेे महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गाँधी है। कर्मचंद गाँधी जी के पिता का नाम था! ऐसा आदेश सिर्फ़ डॉ.आंबेडकर को लेकर निकाला गया। यह डा.आंबेडकर के पिता को सम्मान देने या पूरा नाम लिखने का मसला नहीं, डॉ.अंबेडकर के साथ ‘राम नाम’ नत्थी करने का मसला है। मंशा डॉ.आंबेडकर के विचारों से काटकर ‘रामनामयुक्त बाबा साहेब’ की मूर्ति गढ़ना है जिस पर सब लोग माला पहनाएँ और दंडवत करें। क्या डॉ.आंबेडकर के साथ ऐसा करने दिया जा सकता है? ख़ास तौर पर जब डॉ.आंबेडकर की रचनाओं का प्रकाशन ख़ुद भारत सरकार ने किया है जिसमें उन्होंने बार-बार हिंदू धर्म को मनुष्य विरोधी और शूद्रों का दुश्मन क़रार दिया है। यहाँ तक कि जब 1956 में उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था तो अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दिलवाई थीं जिनमें दूसरी प्रतिज्ञा है – मैं राम और कृष्ण में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा!
डा.आंबेडकर ने लिखा था “अगर हिंदू-राज एक वास्तविकता बन जाता है तो यह स्वाधीनता, समता और बंधुत्व के लिए खतरा है। इस दृष्टि से यह लोकतंत्र से मेल नहीं खाता। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।
(डॉ.अंबेडकर, पाकिस्तान ऑर दि feelपार्टीशन ऑफ इंडिया, 1946, मुंबई, पृष्ठ 358)
आरएसएस के ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदू राष्ट्र’ के प्रोजेक्ट की राह में यदि कोई बड़ी बौद्धिक बाधा डॉ.अंबेडकर की वैचारिकी। आरएसएस और उससे जुड़े संगठन डॉ.अंबेडकर को (विचारमुक्त) ‘देवता’ बनाकर पूजने का अभियान चला रहे हैं। उन्हें लगता है कि जब किसी महापुरुष की मूरत गढ़कर मंदिर बना दिए जाएँ तो लोग भूल जाते हैं कि उस महापुरुष के विचार क्या थे।
गौतम बुद्ध के साथ यह हो चुका है। बुद्ध तर्क की बात करते थे, और मूर्तिपूजा के विरोधी थे, लेकिन उन्हें विष्णु का नवाँ अवतार घोषित कर दिया गया। आज मूर्ति पूजा विरोधी बुद्ध की सर्वाधिक मूर्तियाँ मिलती हैं।
आरएसएस के सामने समस्या यह है कि आज समाज का बड़ा हिस्सा पढ़ने-लिखने के महत्व को समझ रहा है। डॉ.अंबेडकर के विचारों की पुस्तिकाएँ गाँव-गाँव पहुँच रही हैं। इन्हें पढ़कर हिंदू वर्णव्यवस्था में शूद्र करार दी गई जातियों में यथास्थिति के प्रति जो आक्रोश जन्म लेता है और वह राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में प्रकट होता है। यह ‘हिंदुत्व’ के लिए चुनौती है। डॉ.अंबेडकर ने वर्णव्यवस्था और जाति उत्पीड़न को लेकर हिंदू धर्म की तीखी आलोचना की है। सनातनधर्मवादियों ने इसके लिए उनकी निंदा की। चुनावी राजनीति में विजय पा लेने के बाद भी बीजेपी इस वैचारिक अभियान की काट नहीं ढूंढ पायी है।
हिंदुत्व के जन्मदाता ( अंग्रेजों से माफी मांगने के बाद सावरकर ने किताब लिखी थी जो 1923 में , सामने आई थी) इसमें लिखा है कि ‘जिस देश में वर्णव्यवस्था नहीं है उसे म्लेच्छ देश माना जाए। दलितों और स्त्रियों को गुलाम बनाए रखने की समझ देने वाली मनुस्मृति को वेदों के बाद सबसे पवित्र ग्रंथ घोषित करते हुए सावरकर लिखते हैं.. ‘ यही ग्रंथ सदियों से हमारे राष्ट्र की ऐहिक एवं पारलौकिक यात्रा का नियमन करता आया है। आज भी करोड़ों हिंदू जिन नियमों के अनुसार जीवन यापन तथा आचरण व्यवहार कर रहे हैं, वे नियम तत्वत: मनुस्मृति पर आधारित है। आज भी मनुस्मृति ही हिंदू नियम (हिंदू लॉ) है। वही मूल है।’
डा.आंबेडकर ने मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया था। महिलाओं को अधिकार देने वाले हिंदू कोड बिल का आरएसएस और जनसंघ ने विरोध किया और अंबेडकर के ख़िलाफ़ अभियान चलाया, उससे डॉ.अंबेडकर को लगा कि हिंदू धर्म में सुधार की गुंजाइश नहीं है। इसलिए डॉक्टर अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म छोड़कर नागपुर की दीक्षाभूमि में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। मौक़े पर अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दिलवाईं जो हिंदू देवी-देवताओं और मान्यताओं का निषेध करती हैं।
22 प्रतिज्ञाएँ हिंदुत्ववादियों को नागवार लगी। दीक्षा भूमि से इन्हें हटाने की माँग बीजेपी के नेता करने लगे हैं। यह नजर आ रहा है की आरएसएस और बीजेपी एक तरफ़ तो डा.अंबेडकर को पूज्य बताने का अभियान चला रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ उनके विचारों को दफ़नाने की कोशिश हो रही है। तमाम अंबेडकरवादी नेताओं को सांसद और मंत्री बनाकर ‘चुप’ कराने का सिलसिला छिपा नही है। वे डा.आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं का ज़िक़्र नहीं करते।
आइये जानते हैं कि डा.आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ क्या हैं। यह उनके जीवन का अंत–
Not all of OJO’s UK free slots may have a TRY FOR FREE possibility, however with over 2,000 UK online slots to choose from|to choose from}, you’ll be spoiled for alternative. Playing Slotozilla free slots online is finest way|one of the best ways|the best way} to experience on line casino gaming. We type slot games by theme, type, and features, so whether or not you are a first-timer 우리카지노 or a seasoned fanatic, have the ability to|you presumably can} easily navigate via the site and select your preferred titles.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
please do not comment spam and link