द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से परिपूर्ण पूर्ण परब्रह्म अवतार लिया था। इन सोलह कलाओं में श्रीसंपदा, भू संपदा, कीर्ति संपदा, वाणी सम्मोहन, लीला, कांति, विद्या, विमला, उत्कर्षिणि शक्ति, नीर-क्षीर विवेक, कर्मण्यता, योगशक्ति, विनय, सत्य धारणा, आधिपत्य और अनुग्रह क्षमता आदि थीं। हमारा इतिहास गवाह है कि यादव ब्राहमणों का सबसे ज्यादा सम्मान करते चले आ रहे हैं लेकिन ब्राह्मण यादव को क्या दे रहे हैं यह तो जगजाहिर है। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जी की दोस्ती को सबने पढ़ा होगा। हम उसी परंपरा का निर्वाहन करते चले आ रहे हैं, लेकिन ब्राह्मण यादवों को बड़ी ही हेय दृष्टि से देखते हैं। ऐसा हमको लगता है।
यादव समाज के लोग भगवान श्रीकृष्ण के वंशज है। आज भी यादव के रग-रग में दया, क्षमा और दान की भावना भरी पड़ी है। यादव लोग जन्म, मृत्यु व शादी बारात के साथ ही हर मौके पर ब्राह्मण का आदर और सम्मान करते चले आ रहे हैं, लेकिन ब्राह्मण की तरफ से यादवों को अपमान ही मिला है। आज कलिकाल में भी 90 फीसद यादव मांस, मदिरा का सेवन नहीं करते हैं। जबकि पिछड़ी जातियों के लोग जन्म, मृत्यु, शादी समारोह के साथ ही धार्मिक अनुष्ठान में ब्राह्मण कों सम्मान के साथ मंच पर बिठाते हैं।
ब्राह्मण के खाने-पीने और कटुतापूर्ण व्यवहार से पिछड़ी जातियों के साथ ही यादवों को लगने लगा है कि ब्राहम्णों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में नहीं बुलाना चाहिए। क्योंकि सनातन परंपरा के अनुसार हिन्दू पूरी तरह से शाकाहारी थे। चाहे जितना आपात काल आये या फिर जान भी खतरे में पड़ जाए फिर भी हम जीवों पर दया करेंगे और किसी की हत्याकर उसके मांस को अपना नेवाला नहीं बनाएंगे। लेकिन काफी संख्या में ब्राहम्णों को अब मांस, मदिरा से परहेज नहीं रहा है। इससे लगता है कि ब्राहम्णों को धार्मिक अनुष्ठान में शामिल करने से परहेज करने की कोशिश होनाी चाहिए। वह समय आ गया है।
आज देश को ऐसी दिशा में ले जाया जा रहा है जहां से मुस्लि समुदाय की बात तो दूर की रही अब तो हिन्दुओं में भी तीन फाड़ होने के आसार दिखने लगे हैं। एक तरफ दलित डांक्टर बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर को अपना आदर्श और भगवान मानने लगे हैं। दूसरी तरफ यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यादव समाज भी सोलह कलाओं को धारण किए हुए पूर्ण ब्रहम्म भगवान श्रीकृष्ण को भगवान मानने के लिए कोई गुरेज नहीं है। वैसे तो कहा गया है कि जग में सुंदर हैं दो नाम , कृष्ण कहो या राम। लेकिन आज ब्राहम्ण समाज के कुछ लोग भगवान को भी बांटने की कोशिश करने लगे हैं। उनके अंदर की भावना यदाकदा बाहर आने लगी है कि यादव है तो वह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करता होगा और समाजवादियों को वोट भी करता होगा। धर्म, दान और मतदान यह तीनों गुप्त होते हैं। समाज को पूर्ण अधिकार है कि वह किसके पक्ष में मतदान करता है और किस धर्म को मानता है साथ ही किसको दान देता है। इसमें चंदा नहीं। दान और चंदे में बड़ा फर्क है।
अर्थात उनका साफ संकेत है कि यादव समाज भगवान श्री राम को नहीं मानता है। इस तरह का समाज में जहर बोया जा रहा है। इससे सनातन परंपरा को मानने वाला यादव समाज आहत है। साथ ही यह सोंचने के लिए मजबूर हो गया है कि वह सिर्फ भगवान कृष्ण को ही माने जो पूर्ण परमात्मा है। जबकि संविधान भी कई अधिकार मिले हैं। हम चाहे किसी भी धर्म को माने इसके लिए कोई हमे बाध्य नहीं कर सकता है। इसमें भगवान श्री कृष्ण और भगवान श्रीराम या फिर और कोई देवी देवता हो सकते हैं। अधिकांश लोग जय श्री राम का प्रायोजित नारा लगाने से अपने आपको गर्व समझते हैं। दूसरी तरफ जब हम गुरूमंत्र लेते हैं तो धीरे कान बोल दिया जाता है जो कोई दूसरा सुन भी नहीं सकता है। हम हिन्दू धर्म को मानते हैं। जहां चीखने और चिल्लाने की कोई जगह नहीं है। यह तो मुस्लिम समाज में प्रथा है। भक्ती और आत्म भक्ती प्रदर्शन करने की वस्तु नहीं है। साथ यहां पर यह बताना चाहता हूं कि स्प्रिंग को जितना दबाओंगे ठीक उतनी ही तेज प्रतिक्रिया करेगा। यदि चूक हो गई तो उछल कर चोट भी पहुंचा देगा।
एक टिप्पणी भेजें
please do not comment spam and link