पिछली बैठकों की तरह ही रविवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक रही। कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ गांधी परिवार मिला। इस्तीफे की पेशकश की गई। इस्तीफे के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। फिर बहाने व विश्लेषण हुए और चिंतन बैठक करने के वादे के साथ बैठक खत्म हो गई। कुछ लोगों को उम्मीद थी कि कांग्रेस कुछ बड़ा करेगी लेकिन 136 साल पुरानी पार्टी अपेक्षित हार को नाटकीय और आश्चर्यजनक बनाने में कामयाब रही।
विपक्ष अर्थात बीजेपी (BJP) चाहे जितने हमले करती रहे कि कांग्रेस पार्टी ने 70 साल में कुछ नहीं किया है। वैसे मेरी जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने जो किया है उतना आज तक जनता के लिए किसी पार्टी ने नहीं किया है। कमी सिर्फ इतनी रही अवसरवादिता की राजनीति नहीं की। विषम परिस्थिियों में अवसर की तलाश नहीं की। जैसा बीजेपी ने पुलवामा हमले और राम मंदिर निर्माण के बाद किया है। राम मंदिर मुददो वैसे तो कांग्रेस का था। कांग्रेस के समय ही ताला खुला और कांग्रेस के समय ही शिलान्यास किया गया और कांग्रेस के समय ही बाबरी मस्जिद विध्वंस हुई। लेकिन कांग्रेस ने कभी भी चुनावी मुददा नहीं बनाया।
आज जो भी दिखता है अधिकांशताः कांग्रेस के समय की ही देन है। जमींदारी उन्मूलन से से लेकर हरितक्रांति, श्वेत क्रांति, सूचना क्रांति, आरटीआई, औद्योगिक क्रांति, मनरेगा, राजीवगांधी ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना, गांवों में भूमि हीनों को 5 बीघे का पटटा करना, परिवार नियोजन, हवाई जहाज, रेल, सड़क एनटीपीसी के साथ बड़े-बड़े अस्पताल, मेडिकल कालेजों की स्थापना करना, यहां तक कि बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी नदियों के किनार बांध बनाना। पढ़ाई के लिए इंजीनियरिंग कालेज, विश्वविद्यालय जैसे जेएनयू की स्थापना की गई। जहां गरीब बच्चा पैसे के अभाव में भी उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूरी कर सकता है। हां एक कार्य कांग्रेस में नहीं हुआ, बेचा कुछ भी जबकि कई बड़े औद्योगिक फैक्ट्रियों का निर्माण के साथ ही बड़े से बड़ा पावर हाउस की स्थापना की यहां रायबरेली में आईटीआई, एनटीपीसी, अब कुछ समय पहले रेल कोच कारखाने की स्थापना की।
हमारा मानना है कि किसान के बेटे को किसानी नहीं सिखानी पड़ती है जब जिम्मेदारी पड़ती है तब वह अच्छी किसानी करने लगता है। विपक्ष ने राहुल गांधी को कह कह कर इतना कमजोर बना दिया कि आज लगभग हर नागरिक की जुबान पर रटा है कि राहुल गांधी अर्थात कुछ भी नहीं। कहावत है कि आम को यदि सब लोग बबूल कहने लगे तो बिगैर कुछ देखे समझे हर आमदी बबूल कहने लगेगा जबकि असिलयत में वह आम है। जैसे दोनों आंख वाले को कोई काना कहने लगे तो एक दिन उसको काना ही कहकर बुलाया जाएगा। जबकि उसकी दोनों आंखें सही सलामत हैं।
अभी हुए पांच राज्यों के चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.3 फीसद रहा और 403 सीटों वाली विधानसभा में उसके खाते में केवल 2 सीटें आईं। विगत 3 दशकों उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कुल संख्या विधानसभा की आधी सीटों के बराबर भी नहीं है। चार अन्य राज्यों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने दलित कार्ड खेला था लेकिन सीएम चरणजीत सिंह चन्नी जो दो जगह से चुनाव लड़े थे दोनों सीटों पर हार गए। उधर उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी और हरीश रावत दोनों हार गए। मणिपुर में भी कांग्रेस ने भाजपा को चुनाव जीतने में मदद ही की। साथ ही गोवा में चुनाव के बाद गठबंधन करने की उसकी उम्मीदें बिखर गई। यह नतीजे चौंकाने वाले नहीं लगते लेकिन बारीक विवरण स्तब्ध करते हैं।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन किया और वोट प्रतिशत गिरकर 2.5 फीसद रह गया। केरल में उसी वाम मोर्चे के खिलाफ चुनाव लड़ा और दशकों की परंपरा तोड़ते हुए पिनरई विजयन के नेतृत्व वाली माकपा को सरकार बनाने में सक्षम बनाया। अवसरवादियों के साथ समझौता कर कांग्रेस ने असम में भाजपा को सत्ता में वापसी करने की अनुमति दी। एनआर कांग्रेस से रिश्ता तोड़ और तमिलनाडु में द्रमुक का छल्ला बनने जैसी गलतियां कर यह पांडिचेरी में हार गई।
कांग्रेस दशकों से विभिन्न राज्यों में सत्ता से बाहर ह। तमिलनाडु में 55 वर्षों से, पश्चिम बंगाल में 45 वर्षों से, उत्तर प्रदेश और बिहार में 30 साल से ज्यादा समय से, ओडिशा और गुजरात में 25 साल से ज्यादा समय से और इसी तरह अन्य राज्यों में भी हाल के वर्षों में जहां भी मतदाताओं को अपने मुद्दों का प्रतिनिधित्व करने वाला और अपनी भाषा व संस्कृति शिकायतों को दूर करने का व्यवहारिक वैकल्पिक मोर्चा मिल गया। उन्होंने कांग्रेस को हटा दिया। जैसे तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, दिल्ली और पंजाब जहां केजरीवाल की आप ने शानदार प्रदर्शन किया है। जनवरी 2013 में कांग्रेस ने जयपुर में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाने के लिए उत्तराधिकारी योजना शुरू की।
इतनी पुरानी पार्टी का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया गया जिसके पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था। नतीजा सबके सामने है। उसके बाद पार्टी लगातार दो लोकसभा चुनाव हार गई। जीतने से ज्यादा उसने चुनाव हारे हैं। यहां मुद्दा क्षमता और संगठनात्मक नेतृत्व का है। सवाल यह है कि पार्टी किस का प्रतिनिधित्व करती है या उसके होने का मतलब क्या है। 2019 में न्याय के मुद्दे पर प्रचार किया पर इसे आंशिक या पूर्ण रुप से लागू करने के लिए राज्यों में सत्ता के लिए संघर्ष करना पड़ा। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के विचार को बढ़ावा दिया पर पंजाब, छत्तीसगढ़ या राजस्थान में इसे लागू करने में विफल रही।
साल 1936 के लखनऊ अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था हम जनता के साथ काफी हद तक संपर्क खो चुके हैं और उनसे मिलने वाली जीवनदायिनी ऊर्जा से वंचित है। हम सूखते और कमजोर होते हैं। हमारा संगठन सिकुड़ता है और अपनी शक्ति खो देता है। 50 साल बाद 1985 में जवाहरलाल नेहरू के नाती राजीव गांधी ने मुंबई में शताब्दी सत्र में कहा था कि देशभर में लाखों साधारण कांग्रेसी कार्यकर्ता कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों के प्रति उत्साह से भरे हुए हैं, लेकिन वह लाचार हैं क्योंकि उनकी पीठ पर सत्ता और प्रभाव के दलाल सवार है जो एक जनआंदोलन को सामंती कुलीन तंत्र में बदलने के लिए संरक्षण देते हैं।
वर्ष 2022 में वे शब्द सच मालूम हो रहे हैं। पार्टी और उनके नेता अतिथि की तरह उपस्थित जताने में विश्वास रखते हैं। नेताओं ने पार्टी और राजनीति को सीएसआर गतिविधियों में तब्दील कर दिया है। राजनीति में सफलता के लिए विचारों और एक संस्थान की जरूरत होती है। राहुल गांधी ने जुलाई 2019 में अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया था तब से सोनिया गांधी की अंतरिम अध्यक्ष में पार्टी में काम करती है, लेकिन फैसले और निर्देश राहुल और प्रियंका गांधी द्वारा लिए जा रहे हैं। 23 असंतुष्ट नेताओं ने पार्टी में चुनाव और पुनर्गठन की मांग उठाई तो उन्हें गलत बताया गया और सोशल मीडिया पर उनका मजाक उड़ाया गया।
रविवार को कांग्रेस कार्यसमिति ने अध्यक्ष पद और संगठनात्मक चुनाव का वादा फिर दोहराया जैसे-तैसे पार्टी अप्रासंगिक होती जा रही है इसके वादे धूमिल पड़ते जा रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र को विचारों और तर्कों की प्रत्यस्पर्धी राजनीति की मुद्दों पर पूर्णकालिक जुड़ाव की जरूरत है। नारों की आंधी को ट्वीट करने की नहीं। कांग्रेस को इस भ्रम से बाहर निकलना चाहिए कि मतदाता 1 दिन उसे सत्ता में वापस लाएंगे।
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