MLC Election 2022: वंशवाद और परिवारवाद का अनोखा खेल

MLC Election 2022: बीजेपी हमेशा वंशवाद और परिवारवाद के विरुद्व बात करती है। यह कहना कहां तक सही है और कहां तक वंशवाद और परिवारवाद पर पानी फिरता हुआ नजर आता है। यह तो बीजेपी के कथनी और करनी में फर्क दिखेगा। वाद शब्द को देखा जाय तो अपनापन होता है। अपनापन प्रत्येक प्राणी में समाया होता है। पषु और पक्षियों में भी अपनापन इतना समाया होता जिसकी कल्पना करना बहुत ही कठिन होता है। 

बंदर का संशोधित रूप मनुष्य होता है। बंदर अपने मृत बच्चे को अपने शरीर से काफी दिनों तक चिपकाये रहता है। इसको ममता कहें या फिर अज्ञान या फिर मायामोह जो अपने वंष और परिवार को आगे बढ़ाने के लिए यह सब करता रहता है। वंशवाद और परिवारवाद के बिना मानव की कल्पना करना पूरी तरह से निर्थक होगा। लेकिन जब बीजेपी वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ बोलती है तो आम जनमानस को कैसा लगता है होगा यह एक समझदार व्यक्ति आसानी से अनुमान लगा लेता होगा। 

अब हम यह बताने की कोशिश करेंगे कि बीजेपी में अपनापन कहां तक घुला मिला है। अपनी पार्टी को जिताने के लिए पीएम से लेकर छोटे से छोटा कार्यकर्ता हमेषा चुनाव मूड में रहता है। वह जनता का कार्य कब करते होंगे यह तो जग जाहिर है। यदि बीजेपी हो या फिर कोई अन्य पार्टी हो सभी छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं से मिलकर बनी है। इसको इनडायरेक्ट वंशवाद या फिर परिवारवाद ही कहेंगे। अभी जल्द हुए विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया है। इसके बाद भी बीजेपी का पेट नहीं भरा है। 

अब प्रदेष में एमएलसी के चुनाव होने हैं। उसमें बीजेपी ने ज्यादा से ज्यादा अपने ही पार्टी के लोगों को मैदान में उतारा है। कभी इस बात पर विचार किया है कि प्रदेष में और भी जनता है। जिसमें काफी संख्या में लोग पढ़े-लिखे और ईमानदार भी हैं। क्या उनकों मौका नहीं मिलना चाहिए। शयद जनता के बीच से अन्य लोग ईमानदार के साथ ही पढ़े-लिखे राजनीति में आयें तो प्रदेश के साथ ही देश का भला हो। लेकिन बीजेपी या फिर अन्य पार्टियों में अपनापन यहां तक घुला है कि उनको लगता है कि संसार में पार्टी के अलावा और कोई आम आदमी ईमानदार और पढ़ा-लिखा नहीं है। जबकि वोट प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष के साथ ही नगर निगम, नगर पालिका परिशद आदि से वोट की उम्मीद पार्टी करती हैं। लेकिन जब टिकट की बारी आती है तो अपने चहेतों को टिकट देती हैं। 

कभी भी कोई पार्टी ने यह तो नहीं सोंचा होगा कि हमारा पेट भर गया है। अब बचा हुआ खाना भूखी जनता को दे दिया जाए। यह सभी पार्टियां वोट लेना तो बखुबी जानती हैं लेकिन एक टिकट गरीब आदमी को देना नहीं जानती हैं। यह वंशवाद और परिवारवाद का ही असर है। बड़ी-बड़ी पार्टियां कभी नहीं कहती कि अब एमएलसी का चुनाव कोई भी छोटा बड़ा आदमी लडे़। हम सब बड़े राजनीतिक दल एमएलसी चुनाव से बाहर रहकर वोट करेंगे। लेकिन ऐसा करने के लिए किसी भी पार्टी ने हिम्मत नहीं दिखाई है। क्योंकि बड़े राजनीतिक दलों की सत्तालोलुप्ता इतना बढ़ गई है कि उनका पेट भरता ही नहीं है। 

जिस दिन बड़े राजनीतिक दल अपनापन छोड़ देंगे उस दिन प्रदेश और देश में खुशहाली आ जाएगी। साथ ही गरीब आदमी को भी आशा और विश्वास हो जाएगा कि पता नहीं कब हम भी राजनेता बन जाएं। अब तो लगता है कि यही राजनीतिक दल हमेशा राजनीति पर काबिज रहेंगे। इसके साथ ही जनता में अभी जागरूकता की कमी हैं जिस दिन जनता को इन राजनीतिक दलों की असलियत का पता चल जाएगा उस दिन सबके पेट खाली हो जाएंगे। राजनेता एक-एक वोट के लिए माथापच्ची करता रहेगा।

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