उत्तर प्रदेश सहित पंच राज्यों के चुनाव के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ोतरी होना बंद हो गया था। जैसे ही चुनाव समाप्त हुए उसके बाद से आए दिन पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में बेतहासा वृद्धि से आम जनमानस की कमर टूट गई है। महंगाई चरम पर है। इसको लेकर पूरी जनसंख्या का 70 फीसद गरीब किसान अपनी दिनचर्या ठीक से निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं।
सरकारी कर्मचारी के साथ ही बड़े-बड़े व्यापारी उद्योगपतियों पर महंगाई का असर तो कम पड़ता है, लेकिन गरीब किसान पर इसका बहुत ही गंभीर असर देखने को मिलता है। इस महंगाई में गरीब किसान अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और उनकी शादी बारात करने में पूरी तरह असमर्थ हैं। 70 फीसद गरीब किसान को उम्मीद थी की पिछली बार जब बीजेपी सरकार 2017 में बनी थी उसके बाद गरीब किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया था। उसी उम्मीद के साथ गरीब किसानों ने इस बार भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए भरपूर मतदान किया लेकिन उनके हाथ में कर्ज माफी को लेकर निराशा लगी है।
अब गरीब किसानों के सामने कर्ज का भुगतान करने के लिए बड़ी समस्या खड़ी है किवह केसीसी पर लिया गया कर्ज कैसे चुका पाएगा। इसके साथ ही बढ़ती महंगाई ने उनका जीना दुश्वार कर दिया है। लेकिन अब तो चुनाव निपट गया है तो सरकार 70 फीसद गरीब किसानों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। गरीब किसानों को सिंचाई करने के लिए डीजल की अधिक खपत होती है। साथ ही उनको खाद भी महंगे दामों पर खरीदनी पड़ती है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या इस बात की है कि लगभग 90 से 95 फीसद किसान अपनी उपज समर्थन मूल्य अर्थात एमएसपी पर नहीं बेच पाते हैं। वह तो गांव के छोटे व्यापारियों को औने पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हैं।
साथ ही सरकार गरीब किसानों की उपज में 50 या 100 रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी करती ह।ै इससे इस महंगाई में किसानों का कोई भला होने वाला नहीं है। इसीलिए किसान और गरीब होता चला जा रहा है। यहां पर यह बताना जरूरी है कि नौकरी पेशा वाला व्यक्ति अपने बेटे को नौकरी दिलाने के लिए भर पूर प्रयास करता है। लेकिन गरीब किसान कभी नहीं चाहता है कि उसका बेटा किसान बनकर इस ़गरीबी को अपने गले लगा ले।



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