मानव समाज को चार वर्णोंे में बांटा गया है। ब्रहमण, वैश्य, क्षत्रिय, सूद्र। जब कोई सवर्ण दलित महिला के साथ हम विस्तर होते हैं तब छुआछूत का खतरा नहीं होता है। लेकिन जब गांव के कुएं में दलित पानी भरता है तब छुआछूत होता है। और तो और जब मंदिर में भगवान के दर्शन करने जाते हैं तब छुआछूत। इस बात को लेकर किसी ने लिखा है कि यदि हरिजन के छू लेने से है मंदिर का कल्याण नहीं तो मैं बस यही कहूंगा कि मंदिर में पत्थर है भगवान नहीं।
लोग कहते हैं दलित पढ़-लिख गये हैं इसलिए छुआछूत खत्म हो गया है, लेकिन आज तक जितने भी मंदिर हैं वहां पर एक भी दलित मुख्य पुजारी नहीं होगा। अयोध्या, काशी, मथुरा आदि जगहों पर मुख्य पुजारी एक दो अपवाद को छोड़कर अधिकांशतः ब्राहमण ही होगा। यह अलग बात है कि संविधान की देन है कि कोई भी दलित प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बन सकता है। इसके बावजूद देश के प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि सबका साथ सबका विकास तब यह बात जुमला साबित होती दिखाई देती है। क्योंकि अयोध्या, काशी में जब मंदिर के जीर्णाेद्वार की बात आयी तो किसी दलित को आगे नहीं किया गया था। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे आकर अपनी ही फोटो खिचवाते रहे। इस दोहर चरित्र को समझना होगा। इसका असर यहीं तक नहीं है। यह शहर से लेकर गांव तक व्याप्त है।
गांवों में तो यहां तक होता चला आ रहा है कि दलित समाज के लोगों को गांव के बाहर अलग बसाया गया था। आज भी दलित ब्राहमण, वैश्य, क्षत्रीय के सामने अपने चारपाई से खड़ा हो जाता है। यदि चारपाई से न खड़ा हो तो उसको सवर्णों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ता है। दलित द्वारा दिए गए इस सम्मान सेे सवर्ण वर्ग के लोग अपने आपको गर्व महसूस करते हैं। जबकि दलित वर्ग के पुरुर्षों को अपने वर्ग की महिलाओं से शिक्षा लेनी चाहिए कि जब कहीं भी कोई सवर्ण के साथ हमविस्तर होती है तो वही सवर्ण महिला के पैरों तले होते हैं। उस समय सवर्णों का सम्मान कहां चला जाता है। इस कुप्रथा को तोड़ने के लिए सही मायने में कांग्रेस सरकार में इंदिरा जी ने करके दिखाया था। स्वयं दूसरी जाति से शादी करके पीढ़ियों से चली आ रही कुप्रथा को समाप्त करने का काम किया था। यहां तक कि दलित भूमिहीनों को 5 बीघे जमीन देकर उनको भूमिधर बनाया। बच्चों को पढ़ने के लिए अनिवार्य शिक्षा लागू की। साथ मिड डे मिल की स्थापना की जिससे कोई बच्चा भूखा न रहे। यदि बच्चा भूखा और कमजोर होगा तो पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पाएगी। आज तक बीजेपी जो सवर्णों की पार्टी माना जाता है वह कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया होगा जिससे गरीब, किसान, मजदूर और दलित समाज का विकास हुआ हो और वह छुआछूत के कैंसर से बचकर समाज में सवर्णों जैसी जिंदगी जी सके। चंद परिवारों को छोड़कर बहुत कम परिवार ऐसे होंगे जो पढ़-लिखकर आगे बढ़े हों। अधिकांशताः अपनी परंपरा का निर्वाहन करते चले आ रहे हैं। यदि कांग्रेस और संविधान न होता तो आज भी दलित परिवार मैला ढो रहे होते और मृत पशुओं की खाल उतार रहे होते। जिसको आज की बीजेपी जो सवर्णों की पार्टी कहती हैं कि कांग्रेस ने कुछ नहीं किया।
बीजेपी को कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि यह तो बनियों की पार्टी है इससे एक बड़े समाज का कल्याण हो ही नहीं सकता। बीजेपी बात तो गांधी, चंद्र शेखर आजाद, बिस्मल, बाबा साहेब डां भीमराव अंबेडकर की करती है, साथ ही कब्रिस्तानतान, शमशान, जिन्ना पर भी प्रहार करती है। यह दोहरा चरित्र कब तक चलता रहेगा। मोदी जी ने कहा था कि हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज से चलेगा। लोगों से कहा जाता है कि चीनी सामान का त्याग करो स्वदेशी अपनाओं लेकिन स्वयं चीनी कंपनी को ठेका देती है। इस दोहरे चरित्र को आम आदमी को जानना और समझना होगा। तभी लोकतंत्र और संविधान बचेगा। जब संविधान बचेगा तब हम सबको मिले अधिकार बचेंगे और आने वाली पीढ़ी इन दोहरे चरित्र वालों से बच पाएगी।
कांग्रेस के समय कोई घटना होती थी तो नेता अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे देते थे। आज के समय लखीमपुर, हाथरस, उन्नाव कांड जैसी बड़ी घटना हो गई लेकिन कोई नेता ने नैतिक जिम्मेदारी लेकर अपने पद से त्याग पत्र नहीं दिया है। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि इन घटनाओं को भी नेहरू जी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। कांग्रेस अपने ही समय में जनसूचनाक्रांति आरटीटीआई लाकर एक बड़ा अस्त्र तो दिया लेकिन इस समय उसको भी सफेद हाथी बना दिया गया है।
एक कर्मचारी जिंदगी भर मेहनत करता है उसकी पेंशन योजना बंद कर दी गई है। दूसरी तरफ कोई नेता एक बार चुनकर आ जाता है तो जिंदगी भर के लिए पेंशन का हकदार हो जाता है। साथ ही माननीयों के वेतन बढ़ोत्तरी में पक्ष-विपक्ष बाधा नहीं डालता है। सर्वसम्मति से पारित हो जाता हैं। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र में वेतन के लिए कई आयोग बने लेकिन आज उनका क्या हुआ यह जगजाहिर है। यहां तक मीडिया जो सबकी कमियों को उजागर करता है उसके कर्मचारियों के लिए बने आयोग के आदेश ठंडे बस्ते में पढ़े हैं। इसके बाद भी मीडिया वाले अपने को सम्मानजनक मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में कानून व्यवस्था पटरी पर चलने की दुहाई देते हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षा के लिए लोगों को दूसरे देश के लिए पलायन करना पड़ता है।
दूसरी तरफ बीजेपी कैराना में पलायन का मुददा बनाती है। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में प्राइमरी से लेकर कई विश्वविद्यालय की स्थापना की। इंजीनियरिंग और प्रबंधन की पढ़ाई के लिए मैनेजमेंट कालेजों की स्थापना की। स्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्स जैसे बड़े-बड़े अस्पतालों का निर्माण कराया, यह सब देखते हुए आप यह सोचने के मजबूर हो जाएंगे कि देश में हो क्या रहा है। हर आदमी को यातायात की सुविधा मिले इसके लिए रोडवेज बस, रेल आदि का विस्तार किया। गांवों में मनरेगा के साथ ही राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना शुरू की। गरीब किसानों के जीवन स्तर में सुधार हो इसके लिए पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पालन और भेड़पालन आदि के लिए किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराया जिससे लोगों को साहूकारों के पास न जाना पड़े जिससे उनकी इज्जत, जमीन व जिंदगी सबकुछ बच सके।
कांग्रेस के समय औद्योगिक क्रांति के तहत कई फैक्ट्रियां लगाई गईं लेकिन कांग्रेस बेचा नहीं था। इसके बावजूद भी बीजेपी जो सवर्णों की पार्टी है वह नेहरू और कांग्रेस को दोष देती है। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी से लोग परेशान हैं। जब लोग परेशान होते हैं तो विकल्प ढूंढते हैं। विरोध भी करते हैं, लेकिन उसका असर दिखता बहुत ही कम सामने आता है। कुछ लोग तो यह कहते हुए मिल जाएंगे विरोध से क्या होता हैं। बीजेपी के पास ईवीएम है आयेंगे तो योगी और मोदी ही। मोदी है तो सब मुमकिन है।
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