चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। 1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े।
वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया।

जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।
17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।
इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।
अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी।
इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब 'आजादनगर' के रूप में जाना जाता है।
चंद्रशेखर आजाद के प्रेरक कथन :
- मैं अपने संपूर्ण जीवन के अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा
- मैं एक ऐसे धर्म को मानता हूं जो समानता और भाईचारा सिखाता है
- सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे
- दुश्मन की एक-एक गोली का हम डटकर सामना करेंगे। आजाद हैं और आजाद रहेंगे इस जवानी का क्या फायदा यदि मातृभूमि के काम ना आए। जो युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता उसका जीवन व्यर्थ है
- मैं एक ऐसे धर्म को मानता हूं जो समानता और भाईचारा सिखाता है
- सच्चा धर्म वही है जो स्वतंत्रता को परम मूल्य की तरह स्थापित करे
- दुश्मन की एक-एक गोली का हम डटकर सामना करेंगे। आजाद हैं और आजाद रहेंगे
- इस जवानी का क्या फायदा यदि मातृभूमि के काम ना आए। जो युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता उसका जीवन व्यर्थ है
मृत्यु दिनांक: 27 फ़रवरी 1931
चंद्रशेखर आजाद पार्क
वर्ष 1870 में सक्स-कोबर्ग के राजकुमार अल्फ्रेड एवं गोथा प्रयागराज (तब, इलाहाबाद) के दौरे पर आए थे। इस दौरे के स्मरण चिन्ह के रूप में 133 एकड़ भूमि पर इस पार्क का निर्माण किया गया जो शहर के अंग्रेजी क्वार्टर, सिविल लाइन्स के केंद्र में स्थित है। वर्ष 1931 में इसी पार्क में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्र शेखर आज़ाद को अंग्रेज़ों द्वारा एक भयंकर गोलीबारी में वीरगति प्राप्त हुई। आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।
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Explained a mazor part and person of our history. One of the freedom fighters who did fought till their last breath. Shat shat naman.
जवाब देंहटाएंAnd I must say- write did an amazing work writing this article with such details.
Thank you. Means a lot😊
हटाएंGreat efforts by Blogger ✌️keep it up bro 🤗
जवाब देंहटाएंThanks bro🤭
हटाएं🙂🙂🙂🙂
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