जनवरी से मार्च, 2022 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी रही


भारत सरकार के सांख्यिकी और योजना क्रियान्वन मंत्रालय से जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अक्तूबर-दिसंबर की 5.3 फीसद की विकास दर, जनवरी-मार्च 2022 में 4.1 फीसद आंकी गयी है। विकास दर में धीमेपन को पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी हुई दर और उपभोक्ता स्तर पर लगातार चार माह से छह प्रतिशत से ज़््यादा की मुद्रास्फ़ीति को ज़िम्मेदार माना जा रहा है। यूक्रेन और रुस के युद्ध के कारण सप्लाई चेन पर प्रभावित हुई है। इस कारण खाद्यान्नों व अन्य सामान की क़ीमत बढ़ी है।  लोगों के ख़र्च करने की क्षमता पर भी असर पड़ा है।

2022 के वित्तीय साल के दौरान जीडीपी ग्रोथ की दर 8.7 फीसद रहने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। यह सरकार के पहले के अनुमान 8.9 फीसद से कम है। इससे पिछले वित्तीय साल में जीडीपी ग्रोथ की दर 6.6 फीसदी रही थी। वित्तीय साल 2022 के अंतिम तिमाही में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में मामूली कमी देखने को मिली है। रूस-यूक्रेन तनाव और वैश्विक स्तर पर मांग कम होने की वजह से आपूर्ति में कमी हुई है, साथ ही स्टील, प्लास्टिक्स और अन्य इंडस्ट्री में लागत मूल्य बढ़ा है. इसका असर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों पर पड़ा है। 

सबसे ज्यादा रोज़गार देने वाला कृषि क्षेत्र में 4.1 फीसद का ग्रोथ देखने को मिला है।  खाद की बढ़ती क़ीमत और अप्रत्याशित मानसून ने इस सेक्टर में लागत बढ़ने से आने वाले दिनों में इसे नुकसान उठाना पड़ सकता है। व्यापार, होटल, परिवहन और संचार जैसी सेवा क्षेत्रों में चौथी तिमाही में ग्रोथ धीमी होकर पिछली तिमाही की विकास दर 6.3 फीसदी की तुलना में 5.3 फीसदी रह गयी है. सर्विस सेक्टर में ज़्यादातर लघु और माइक्रो स्तर की कंपनियां काम करती हैं, और ये कंपनियां हीं बड़े पैमाने पर लोगों को अंसगठित रोज़गार मुहैया कराती हैं. यह पिछले कुछ सालों से भारत के विकास का मुख्य आधार भी रही हैं।

मौजूदा समय में खुदरा मुद्रास्फीति आठ साल के सबसे उच्च दर पर है, पेट्रोलियम ईंधन की क़ीमत लगातार बढ़ती क़ीमत ने भी लोगों की खपत को प्रभावित किया है। यही कारण है कि महीनों तक ग्रोथ केंद्रित मौद्रिक नीति पर ध्यान केंद्रित करने के बाद, रिजर्व बैंक ने मौजूदा नीतियों से हटते हुए ब्याज़ दरों को बढ़ाने का फ़ैसला लिया है ताकि बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाया जा सके। आने वाली तिमाहियों में ब्याज दरों में ऐसी और बढ़ोतरी की उम्मीद है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रोज़मर्रा की वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती क़ीमतें अगले वित्तीय वर्ष में भी देश की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि कच्चे तेल की क़ीमतों में हर 10 फीसद की वृद्धि से मुद्रास्फ़ीति में 30 बेसिस प्वाइंट्स की वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था की वृद्धि में 20 बेसिस प्वाइंट्स की कमी आएगी।




Post a Comment

please do not comment spam and link

और नया पुराने