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| चंबल के शेर व बागी मलखान सिंह |
मलखान सिंह जब 17 और 18 साल के नवयुवक थे उस समय वह आम आदमी की तरह धार्मिक थे। गांव में बने मंदिर की 100 बीघा जमीन वहां के मुखिया से मुक्त कराना चाहते थे। जिसके लिए मलखान सिंह को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जेल जाना पड़ा, उनके साथी की हत्या भी हुई। जिसके बाद मलखान सिंह काफी टूट चुके थे और यह अन्याय बर्दाश्त ना कर सके। उसके बाद से मलखान सिंह ने अपने को बागी घोषित कर दिया।
चंबल के बिलाव गांव में मंदिर की 100 बीघा जमीन के विवाद के चलते मलखान के रिश्तेदार की हत्या हो गई थी। इसके बाद उन्होंने शासन और उन लोगों के खिलाफ हथियार उठा लिया। उन पर 30 पुलिसकर्मियों समेत 150 से अधिक लोगों की हत्या का आरोप था।तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के प्रयास से मलखान सिंह उस दुनिया को छोड़ कर अपनी शर्तों पर सामान्य आदमी बनने का प्राण ले लिया और अपने आपको आत्मसमर्पण कर दिया। मलखान सिंह आज भी अन्याय के घोर विरोधी हैं। यदि किसी नेक इंसान पर जुल्म हो रहा है तो मलखान सिंह को बर्दाश्त नहीं होता। उसका खुलकर विरोध करते हैं।
मलखान सिंह चंबल के शेर होने के साथ ही चरित्रवान व्यक्ति भी हैं। किसी की बहन बेटी की तरफ कभी भी निगाह उठाकर नहीं देखा। अपने साथियों को भी चेतावनी दी थी यदि कोई किसी अबला की इज्जत पर हमला करेगा तो मैं उसकी जान ले लूंगा। सच्चे डाकू का यह धर्म होता है कि धन और धर्म अर्थात इज्जत दोनों नहीं लुटे जाते हैं। गरीब बहन बेटियों की शादी में भरपूर मदद भी करते थे।
मलखान सिंह की दुश्मनी जुल्म और ज्यादती करने वाले अत्याचार के खिलाफ थी। गरीब आदमी को कभी सताने की मलखान सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था। इसी कारण पुलिस कभी मलखान सिंह को पकड़ नहीं पाई क्योंकि पुलिस की खबर गांव के गरीब लोग मलखान सिंह तक पहुंचा देते थे।
मलखान सिंह का अपने पीछे की दुनिया को छोड़ कर राजनीति में आकर सफेदपोश में छिपे भेड़ियों को खोजना चाहते थे। साथ ही जनता ने जिस प्रतिनिधि को चुना है वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा करें। यह राजनीति में लागू करना चाहते थे। इसीलिए 2014 के लोकसभा चुनाव में लखीमपुर के धौरहरा लोकसभा सीट से शिवपाल यादव की पार्टी से उम्मीदवार बनकर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन जनता का प्यार उनको नहीं मिल पाया।

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