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| काल्पनिक |
समान नागरिकता और कानून की बात कोई आज की नहीं है जब देश का नाम भारत पड़ा था उसके पहले कौरवों और पांडवों (महाभारत) युद्ध समाप्त के बाद धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने थे उसी समय भगवान कृष्ण ने कहा था आज से सभी के लिए एक कानून होगा और पूरे आर्यावर्त को भारत के नाम से जाना जाएगा।
धर्मराज युधिष्ठिर के बाद धीरे-धीरे धर्म का पतन होने लगा आज यह स्थित यह हो गई है की जनप्रतिनिधि अर्थात राजा निज स्वार्थ के कारण कितना नैतिक मूल्यों को गिरा सकता है हम सभी को देखने को मिलता है। अब राजा प्रजापालक कम शोषण करने वाले बन गए। अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण इतने नीचे गिर जाते हैं। इसकी कल्पना नहीं की गई थी।
सुनते हैं कि लोग कलयुग में रामराज लाने का सपना दिखाते। यदि कोई इस तरह की बात करता है तब तो लगता है ऐसे लोग ईश्वर से भी ऊपर उठ चुके हैं जो पूरी तरह काल्पनिक है। प्रकृति के चक्र को आज तक कोई रोक नहीं पाया यहां तक कि खुद ईश्वर भी नहीं रोक पाए। सतयुग में द्वापर और कलयुग में त्रेतायुग को लाने की बात करता है इससे तो यह लगता है कि ऐसे लोग ईश्वर को भी पीछे छोड़ चुके हैं। त्रेता में सीता जी का हरण हुआ था उसके बाद सबसे बड़ा राम-रावण युद्ध हुआ था जिसमें बहुत सारे निशाचर मारे गए थे। शायद कोई आताताई निशाचर नहीं बच पाया था। द्वापर युग में द्रोपदी का चीर हरण हुआ था जिसके बाद महाभारत हुआ था।
आज कलयुग में आए दिन आज की सीता का चीरहरण होता है। उसके बाद आज की सीता अपनी जान देकर उनकी आत्मा सोंचती होगी हे! ईश्वर यदि सतयुग के राम होते और द्वापर के कृष्ण होते तो आज के निसाचर और दुर्योधन, अश्वस्थामा को मारते तो हमारी आत्मा को शांती मिलती। दुःख इस बात पर होता है कि आज के राजा में इतनी शक्ती नहीं है कि उन अधर्मियों को गलत कह सके। कभी-कभी तो राजा ही इन अधर्मियों को बचाने में लग जाते हैं। या फिर आज के राजा बालि के पक्ष में पूरी बानर सेना दिखाई देती है। सुग्रीव के पक्ष में कोई नहीं है। न ही सुग्रीव की पत्नी के पक्ष में। जिस देश में नारी की रक्षा करने में मर्द नाकाम होते हैं उस का पतन बहुत ही है। कोरे आश्वसन से काम नहीं चलने वाला। पूरे मनोयोग के साथ आज की नारी अर्थात लक्ष्मी सीता को बचाने के पक्ष में राजा के साथ ही हम सबको लगना होगा। तभी बेटी बच पायेगी और पढ़ पाएगी।

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