लखनऊः लॉकडाउन ने भगवान के घर की आर्थिक स्थिति चरमरा डाली, मंदिरों का खर्च चलाने के लिए एफडी तोड़नी पड़ी। सोना बैंकों में रखना पड़ा। लॉकडाउन और उसके बाद अनलॉक के तहत श्रद्धालुओं की संख्या सीमित होने का असर मंदिरों के दान और चढ़ावे पर पड़ा है। आय में कमी से परेशान उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ, झारखंड के बाबा वैद्यनाथ और पटना के महावीर मंदिर की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है। मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में कर्मचारियों को वेतन देने के लिए एफडी तक तुड़वानी पड़ी। दक्षिण भारतीय राज्यों के मंदिर सोने को बैंक में जमाकर ब्याज से कर्मचारियों के वेतन और रखरखाव की व्यवस्था कर रहे हैं।
आय बढ़ाने के लिए सावन में काशी विश्वनाथ मंदिर की आरती के टिकटों की कीमत बढ़ानी पड़ी। ऑनलाइन रुद्राभिषेक की शुरुआत की गई है।लॉकडाउन से पहले औसतन 55 से 60 लाख रुपये हर माह सिर्फ हुंडी से निकलते थे, लेकिन अभी छह माह से अधिक का समय बीत चुका है और हुंडी नहीं खोली गई है। सन 2008 तक दान में मिला सोना एसबीआई में जमा है, जिसका ब्याज मिलता है। श्रद्धालुओं की संख्या पांच से से सात फीसदी रह गई है।
द्वारकाधीश मंदिर में प्रबंधन ने एफडी तुड़वाकर 65 कर्मियों को वेतन दिया। हालांकि कुछ को आधा व कुछ को 75 फीसद वेतन मिला। श्री कृष्ण जन्मस्थान के लगभग 150 कर्मचारियों को प्रबंधन ने जमा राशि से वेतन भुगतान किया। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के 70 कर्मचारियों को भी ऐसे ही मदद मिली। गोवर्धन का मुखार्रंवद जतीपुरा तो एक सितंबर से ही खोला गया है।
झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ मंदिर का वेतन और अन्य खर्चों का काम अभी तक जमा पूंजी से चल रहा है। मगर भक्तों से दान की अपील की जा रही है। सामान्य दिनों में दान पेटी से हर दिन 25-30 हजार और बड़े दानपात्र में 80 हजार से एक लाख चढ़ावा आ रहा था, जो नगण्य है।





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