सरकार कितने भी दावे करे, लेकिन हमारे देश में अभी भी बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनके पास न ही पक्के मकान और न ही खेती योग्य जमीन उनकी जिंदगी तो बस मेहनत और दूसरों मजदूरी करके ही कट रही है जिनकी कोई परवाह करने वाला नहीं है। क्योंकि जो स्थानीय जिम्मेदार हैं वह शासन-प्रशासन तक सही बात पहुंचाने से कतराते हैं, इस कारण पात्र आज भी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं। ये लोग सरकार की मंशा पर हमेशा पानी फेरते रहते हैं, जिससे सरकार की छबि भी धूमिल होती है।
अचलगंज थाना क्षेत्र के टीकाखेड़ा गांव के मजरे जमुका निवासी मजदूर परशुराम शर्मा के दो बेटे शिवललित (9) व पुष्पेंद्र (8) गुुरुवार रात खाना खाने के बाद आंगन में चारपाई पर सो गए। पास की दूसरी चारपाई पर मां सुनीता सो रही थी। सुबह ठंड महसूस होने पर दोनों मासूम भाइयों ने चारपाई के नीचे गिरी चादर को उठाया और उसे ओढ़ लिया। चादर में लिपटे जहरीले सांप ने दोनों बच्चों को डस लिया।
बच्चों का शोर सुन मां की नींद खुल गई। जब तक वह कुछ समझ पाती दोनों के पेट व कान में दर्द शुरू हो गया। मुंह से झाग निकलने के साथ वह बेहोश हो गए। पिता परशुराम बेटों को लेकर जिला अस्पताल पहुंचा, जहां डॉक्टर ने दोनों बच्चों को मृत घोषित कर दिया। बडे़ बेटे शिवललित के कान व छोटे बेटे पुष्पेंद्र के पेट में सांप के काटने के निशान मिलने की डॉक्टर ने पुष्टि की है। वहीं, बच्चों के जीवित होने के अंदेशे पर पिता उन्हें अस्पताल से ले आया और गांव में दोपहर तक झाड़फूंक कराता रहा। बच्चों की सांस न चलने पर उसने सपेरे को घर बुलाया। सपेरे ने कुछ देर बाद सांप को पकड़कर बाल्टी में बंद कर दिया। बच्चों की मौत की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने का प्रयास किया। पिता ने पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया। मृत बच्चों में शिवललित कक्षा चार व पुष्पेंद्र कक्षा तीन का छात्र था।
बच्चों की मौत की सूचना पर ग्राम प्रधान के पति अजय कुमार शुक्ल ने कानूनगो रामदेव मिश्र को घटना की जानकारी दी। जिस पर उन्होंने लेखपाल राजकुमार बाजपेई को घटना की जांच के निर्देश दिए। लेखपाल ने ग्राम प्रधान की मदद से मोबाइल के जरिए बच्चे के पिता से वार्ता की। जिस पर उसने सांप के डसने से बच्चों की मौत की बात कही। लेखपाल ने बताया कि परिवारीजनों ने बच्चे को झाड़फूक के लिए मौरावां ले गए हैं, जिस पर शनिवार को गांव जाकर स्थितियों का जायजा लिया जाएगा।
आवास मिल जाता तो न जाती बच्चों की जानः मृत बच्चों के पिता परशुराम ने बताया कि वह काफी अर्से से गांव में एक कच्चे मकान में रहकर गुजर-बसर करता है। न ही उसे आवास मिला और न ही राशन कार्ड मुहैया कराया गया। 5 बिस्वा जमीन व मजदूरी के सहारे वह परिवार चला रहा है। उसने बताया कि कि आवास मिल जाता तो शायद बच्चों की जान न जाती।


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