आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने 2015 में आरक्षण खत्म कर दिए जाने का बिहार में ऐसा माहौल बनाया कि मोदी लहर काम नहीं आ सकी। अब एक बार विधानसभा चुनाव का माहौल गरम है और राजनीतिक दलों ने चुनावी प्रचार शुरू कर दिया है। ऐसे में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को विभिन्न उपजातियों में विभाजित कर आरक्षण के कोटे में एक और उपकोटे की व्यवस्था करने के फैसले से बिहार चुनाव से पहले सियासत गरमा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 न्यायधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा, निचले स्तर तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के इरादे से राज्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के भीतर भी उपवर्ग बना सकते हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि आरक्षण का लाभ लगातार वही ले रहे हैं, जो ऊपर उठ चुके हैं और जो नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व हासिल कर चुके हैं। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 14, 15,16, 338, 341, 342 और 342, की व्यापक जनहित में व्याख्या करने का वक्त आ गया है। इनकी व्याख्या कर इंदिरा साहनी और अन्य फैसलों की बाध्यकारी नजीरों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट के पीठ की इस टिप्पणी से एससी-एसटी आरक्षण में ओबीसी की तरह से क्रीमी लेयर लागू होने का दरवाजा खुल सकता है। हालांकि एससी-एसटी के आरक्षण में केंद्र सरकार क्रीमी लेयर का विरोध कर रही है और ये मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के उप.वर्गीकरण के मुद्दे पर 7 जजों की संवैधानिक बेंच का गठन किया है, जिसके बाद सियासी तापमान गरमा सकता है।
वह कहते हैं यह टिप्पणी बिहार में चुनाव की सरगर्मी के बीच है। जहां जाति आधारित राजनीति होती रही है। नीतीश कुमार बिहार में दलित समुदाय को पहले ही दलित और महादलित में बांटकर राजनीति कर चुके हैं, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं मिला है। श्याम रजक, उदय नारायण और रमा रमाई जैसे दलित नेता जेडीयू से अलग होकर आरजेडी के खाते में आ गए हैं। वहीं, एनडीए खेमे में राम विलास पासवान हैं, जो बिहार के दलितों में डोमिनेटिंग जाति है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी दोहरी तलवार पर चलने जैसा है। इससे दलित समुदाय की नाराजगी बढ़ सकती है, लेकिन सवाल यह है कि इस मुद्दे को राजनीतिक दल कैसे उठाते हैं यह देखने वाली बात होगी।

दलित चिंतक प्रोफेसर रतन लाल कहते हैं कि अदालत को संवैधानिक रूप से व्यवहार करना चाहिए। देश में विधायिका सर्वोपरि है न की न्यायपालिका। उन्होंने सवाल किया कि क्या एससी, एसटी समुदाय को 22.5 प्रतिशत आरक्षण मिल गया। आरक्षण गरीबी उन्मूलन प्रोग्राम नहीं है, बल्कि प्रतिनिधित्व की व्यवस्था है। गैर संवैधानिक रूप से जो 10 फीसदी सवर्णों को आरक्षण दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट को उस पर फैसला करने का समय नहीं है, लेकिन दलित और ओबीसी के आरक्षण पर एक के बाद एक टिप्पणी और फैसला दिया जा रहा है। यह सामाजिक न्याय के खिलाफ एक साजिश की जा रही है। बिहार चुनाव में निश्चित तौर पर असर पड़ेगा और दलित ही नहीं बल्कि ओबीसी समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर संजीदगी है।
बिहार में पहले ही दलितों का वर्गीकरण हो चुकाः दलित चिंतक और जेएनयू में राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर हरीश वानखेड़े कहते हैं कि देश के हर एक राज्य में दलित समुदाय के बीच एक डोमिनेटिंग कास्ट होती है। बिहार में पासवान तो यूपी में जाटव और महाराष्ट्र में महार दलित समुदाय के बीच ऐसी जातियां हैं, जिनके खिलाफ दलितों की दूसरी जातियों को गोलबंद कर राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है। नीतीश कुमार बिहार में 2005 में दलितों के बीच वर्गीकरण कर महादलित की राजनीति खड़ी कर चुके हैं। महादलितों के दम पर जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी भी बना रखी है और अपनी राजनीति को खड़ा करना चाहते हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बिहार की राजनीति में उसी राजनीति के आधार को मजबूत कर रही हैए जिसे नीतीश कुमार करते रहे हैं।
हरीश वानखेड़े कहते हैं कि यह मुद्दा इस चुनाव में कैसे इस्तेमाल होगा यह अलग बात है, लेकिन यह बिहार का ही नहीं बल्कि नेशनल मुद्दा है और आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो रवैया है वो ज्यादा चिंताजनक है।आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कोरोना काल में ही तीन फैसले दे चुका हैण् ऐसे में एससी-एसटी समुदाय के बीच कोटा दर कोटा के मामले को 7 जजों की बेंच पर भेजने का फैसला राजनीतिक रूप से भी काफी अहम हो जाता हैण् संवैधानिक पीठ अगर ईवी चिन्नाया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को पलटती है तो केंद्र सरकार के दोनों हाथ में लड्डू आ जाएंगे। वह सुपीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर बहुत आसानी से न सिर्फ अनुसूचित जाति से यूपी के जाटव और बिहार के पासवान को अलग उपवर्ग में कर सकती है, बल्कि ओबीसी की कुछ जातियों. मसलन अहिर, कुर्मीए लोध को अलग-थलग करने की मंशा पूरी हो सकती है।





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