देश के प्रमुख संस्थानों में प्रवेश के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी जो उच्च स्तर की प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। मेडिकल कॉलेजों, आईआईटी, आईआईआईटी, एनआईटी, सीएफटीआई और आईसीएआर.एयू के शैक्षणिक सत्र इन प्रवेश परीक्षाओं पर निर्भर हैं। शैक्षणिक प्रणाली में बड़े सुधार के उद्देश्य से मानव संसाधन मंत्रालय ने तीन साल पहले नेशनल टेस्टिंग एजेंसी बनाई थी। नवंबर 2017 में एनटीए को कैबिनेट से मंजूरी मिली। इसका गठन, इसके एक सत्र में परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों की गिनती लगभग 4.5 मिलियन है। उदाहरण के लिए 8.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों को मेन में और एडवांस में लगभग 16 लाख उम्मीदवारों के शामिल होने की उम्मीद जताई है। अकेले इन दो परीक्षाओं की गिनती 2.4 मिलियन है। इसके अलावा लगभग 2.5 मिलियन उम्मीदवार आईसीएआर प्रवेश परीक्षाओं में उपस्थित होंगे। अन्य हायर इंस्टीट्यूट की प्रवेश परीक्षाओं में डीयू, जेएनयू आदि के लिए प्रवेश शामिल हैं।नेशनल टेस्टिंग एजेंसी का मानना है कि हमें सिक्के का दूसरा पहलू भी देखना चाहिए। ये पूरी कवायद एक पूरे एकेडमिक कैलेंडर इयर को बचाने के लिए है। कई उम्मीदवारों के एक वर्ष को बचाने के लिए प्रवेश परीक्षाओं का संचालन करना आवश्यक है। यदि हम दूसरे पक्ष को देखते हैं और इसे शून्य वर्ष मानते हैं। तो हमारी प्रणाली एक सत्र में दो साल के उम्मीदवारों को कैसे समायोजित कर पाएगी। इसलिए एनटीए का पूरा प्रयास है कि एक साल की बचत हो। भले ही सत्रों में थोड़ी देरी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने इन परीक्षाओं को स्थगित करने के संबंध में रिट पिटीशन को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने फैसले में कहा भी कि हम यह पाते हैं कि 2020 परीक्षा को स्थगित करने के लिए की गई प्रार्थना का कोई औचित्य नहीं है। इस लंबे और पूर्ण शैक्षणिक वर्ष को बर्बाद नहीं किया जा सकता है।
कई निजी संस्थान और विदेशी, अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, जो इन परीक्षाओं पर निर्भर नहीं हैं। सभी ने वर्चुअल कक्षाओं का सहारा लेते हुए सत्र शुरू किया है। इस परिदृश्य में, एक सत्र खोना उन छात्रों के लिए नुकसानदेह होगा जो आगे भी सरकारी कॉलेजों में अध्ययन करने की इच्छा रखते हैं। असम, अरुणाचल, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने छात्रों के जीवन को सामान्य स्थिति में लाने के लिए प्रवेश के लिए कॉमन प्रवेश परीक्षाएं भी निर्धारित की हैं। इस बीच एडमिट कार्ड जारी होने के बाद, एनटीए को दोनों तरह के छात्रों की ओर से रीप्रजेंटेशन मिले हैं। एक वर्ग जो परीक्षाएं चाहता है। और दूसरा वो जो कोविड 19 के चलते परीक्षा टालने की दलील दे रहे हैं। एनटीए का कहना है कि छात्रों के दोनों समूहों ने अपने पक्ष में मजबूत तर्क दिए हैं।
नीट और जेईई परीक्षा को लेकर मचे बवाल के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इसे छात्रों के भविष्य के लिए बेहद जरूरी बताया है। उन्होंने चीन और जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर परीक्षा कराने में और देरी हुई तो यह साल जीरो एकेडमिक साल में बदल जाएगा जो सही नहीं होगा। शिक्षा मंत्री चीन में होने वाले नैशनल कॉलेज प्रवेश परीक्षा और जर्मनी में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा ।इपजनत का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इन देशों में कोविड.19 महामारी के दौरान प्रवेश परीक्षाएं आयोजित हुई हैं। शिक्षा मंत्री ने कहा कि हालांकि देश कोरोना महामारी के दौर से गुजर रहा है लेकिन एकेडिमक और छात्रों का करियर को बर्बाद नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, जीवन बढ़ने का नाम है और हमें मजबूत बनना होगा। परीक्षा 1 से 6 सितंबर के बीच होगी और छम्म्ज् की परीक्षा 13 सितंबर को कराई जाएगी।
कोरोना काल में JEE-NEET परीक्षा कराने को लेकर बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है। इसको लेकर आज कांग्रेस देशव्यापी प्रदर्शन कर रही है। राज्य और जिला मुख्यालयों पर केंद्र सरकार के कार्यालयों के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता नारेबाजी कर रहे हैं। साथ ही सोशल मीडिया तक हल्ला बोला जा रहा है और JEE-NEET को टालने की अपील की जा रही है।
JEE-NEET परीक्षा के विरोध में ऑनलाइन अभियान भी चलाया जा रहा है. सोशल मीडिया पर आज यानी 28 तारीख को ही कांग्रेस की ओर से राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन अभियान चलाया जा रहा है. सुबह 10 बजे से वीडियो, पोस्ट के माध्यम से परीक्षा का विरोध किया जा रहा है।



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