भूमि पूजन से पहले अखिलेश यादव ने ट्विटर पर जय सियाराम बोला, जय श्रीराम नहीं

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने आज 5 अगस्त को अयोध्या (Ayodhya) में श्रीराम मंदिर जन्मभूमि पूजन से पहले एक ट्वीट में लिखा कि मैं उम्मीद करता हूं कि आज की और भविष्य की पीढ़ियां मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के द्वारा दिखाए गए मार्ग और शांति के लिए मर्यादा का पालन करेंगे।

भूमि पूजन से पहले अखिलेश यादव ने ट्विटर पर जय सिया राम कहां, जय श्रीराम नहीं


शिव के कल्याण, श्रीराम के अभयत्व व श्रीकृष्ण के उन्मुक्त भाव से सब परिपूर्ण रहें! आशा है वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियां भी मर्यादा पुरूषोत्तम के दिखाए मार्ग के अनुरूप सच्चे मन से सबकी भलाई व शांति के लिए मर्यादा का पालन करेंगी।

अखिलेश यादव ने ट्वीट किया-


'जय महादेव जय सिया-राम
जय राधे-कृष्ण जय हनुमान
भगवान शिव के कल्याण, श्रीराम के अभयत्व व श्रीकृष्ण के उन्मुक्त भाव से सब परिपूर्ण रहें!
आशा है वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियां भी मर्यादा पुरूषोत्तम के दिखाए मार्ग के अनुरूप सच्चे मन से सबकी भलाई व शांति के लिए मर्यादा का पालन करेंगी.।


सनातन परंपरा और हिंदू धर्म के अनुसार जय श्रीराम नहीं। राम, राम या फिर जय सियाराम बोला जाता रहा है जो कि एक परिपूर्ण मंत्र है। सिया के बिना राम अधूरे, राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं। इसी तरह त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवियां अर्थात लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती के बिना अधूरे हैं। साथ ही धर्म और शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले देवियों की पूजा की जाती है और उनका स्थान दाहिने दिया जाता है। इसीलिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जय सियाराम बोला है जो एक परिपूर्ण मंत्र है। जिसमें भक्ति और शक्ति है। जिसका वर्णन रामचरितमानस में किया गया है। 

सिया राम कहो मैं सब जग जानी।
करो प्रणाम जोर जुग पानी।।

आज भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ किया जा रहा है। अच्छी बात है राम का कार्य हो रहा है।
सनातन धर्म के कुछ जानकार और धर्म में आस्था रखने वाले कुछ लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आज के अज्ञान ढोंगी भक्त कसम तो राम की खा रही है लेकिन उनके आदर्शों पर चलने के लिए जो जानकारी होनी चाहिए उसको इकट्ठा करना या मानना उनके लिए बड़ी कठिन बात है। 

मां भगवती सीता जी के वनगमन के बाद प्रभु राम ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ की शुरुआत होने वाली थी की कुछ विद्वान पंडितों ने यह कहकर यज्ञ पूर्ण न होने का हवाला दिया की जब तक वैवाहिक जीवन के बाद किसी भी कार्य में जीवन की गाड़ी के दोनों पहिया चलने चाहिए। अर्थात  प्रभु राम के साथ मां भगवती सीता जी का इस अश्वमेध यज्ञ में अति आवश्यक है। प्रभु राम ने कहा था की रघुकुल रीति के अनुसार हम बचन से बंधे हैं। इसलिए सीता जी को वन से नहीं ला सकते। तब उपस्थित विद्वान पंडितों ने सीता जी की प्रतिमूर्ति बनवा कर यज्ञ का अनुष्ठान कराया था। आज मंदिर निर्माण के लिए राम जन्म भूमि पूजन में मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जो एक शादीशुदा है उनके साथ उनकी धर्मपत्नी का होना अति आवश्यक था, तभी भगवान राम का कार्य पूर्ण होगा। धर्म के जानकार और आस्था रखने वालों का यह भी मानना है कि जब तक पति पत्नी मिलकर यह शुभ कार्य नहीं करेंगे तब तक हम लोग अयोध्या नहीं आएंगे। 

यदि भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पत्नी को लाने की बात नहीं मानते तो इनको मुख्य अतिथि के रूप में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि पूजन में नहीं होना चाहिए। न ही आने वाले समय में किसी भी धार्मिक कार्य में मुख्य अतिथि के रूप में नहीं होना चाहिए। उधर ओवैसी का कहना है कि प्रधानमंत्री को राम जन्म भूमि पूजन में शामिल नहीं होना चाहिए था। असंवैधानिक है।

शांतनु वंश के कुछ अंश ऐसा करने के लिए ठान लिया तो रामराज्य की परिकल्पना करना दूर की कौड़ी साबित होगा क्योंकि राम राज्य में कहा गया था.....

दैविक, दैहिक,भौतिक तापा। रामराज कौनेहु नहि व्यापा

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