कौन सुनेगा किसको सुनाएं.., बेजुबानो के इशारों को अगर समझो ... तो तालाब में पानी भर दो

  


वर्तमान सत्तारूढ़ दल के जिम्मेदारो को तब तक कुछ नहीं समझ में आता है जब तक उनको हनुमान जी की तरह है बुद्धि बल का एहसास नहीं कराया जाता है। ऐसे समय पर चौथे स्तंभ और समाजसेवियों की जिम्मेदारी बनती है कि वह सोई हुई सरकार को जगाए और उसके बल और पौरूस का एहसास दिलाए कि  आप तो समुद्र पार जा सकते हैं और लौट भी सकते हैं। क्योंकि जनता ने 5 किलो राशन पाने के बाद आप को प्रचंड बहुमत की सरकार दी है।

इस प्रचंड गर्मी में उन बेजुबान पशु पक्षियों की कौन सुने जिनके पास खाने की बात तो छोड़ दो पीने के लिए पानी भी नहीं है। अधिकांश तालाब, नहर और छोटी नदियां सूख गए हैं। जहां आचमन के लिए भी पानी नहीं है। बेजुबान पशु पक्षियों की बात को चौथे स्तंभ अर्थात मीडिया और समाजसेवी समाजसेवी सरकार को बताना चाहते है कि वह अपने कुंभकरण की नींद से जागे और तालाबों के साथ ही नहर और छोटी मोटी नदियों में पानी भरने का काम करें। जिससे पशु पक्षियों के साथ ही जमीन पर रहने वाले जीवधारी को जीने के लिए पानी मिल सके। 

सरकार हर साल की तरह इस साल भी तालाबों में पानी भरवाएगी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। इस देरी के कारण कई हजार पशु पक्षी पानी के अभाव में अपनी जान गवा चुके होंगे। कहा गया है कि,... का वर्षा जब कृषि सुखानी। अब चेते का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत।

तीनों नए कृषि कानूनों के वापस लेने के बाद किसानों को एहसास हो गया था कि  बीजेपी की सरकार आयेगी और किसानों की बात जरूर सुनेगी। गरीब किसान जिन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज लिया है उनको विश्वास था कि पिछली बार की तरह इस बार भी यदि बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो उनका कर्ज माफ हो जाएगा। लेकिन अब उन गरीब किसानों की आशा निराशा में बदलती जा रही है। गरीब किसानों के पास बहुत सारी समस्याएं हैं जिनका वह पूरी तरह निर्वाहन नहीं कर पा रहा है। इस समय जब सरकार मदद कर देती है तो उनकी दिनचर्या पटरी पर लौट आती है नहीं तो स्थिति यह बनी रहती है कि गरीब किसान अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने के साथ ही उनकी शादी बरात के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।


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