भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे तो सीएम योगी आदित्यनाथ ने अनुसूचित जाति की बसंती के घर किया भोजन



उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहुंचे। रामलला का दर्शन पूजन करने के बाद मलिन बस्ती में अनुसूचित जाति की बसंती के घर दोपहर का भोजन करने आते। मुख्यमंत्री को भोजन में लौकी और करेले की सब्जी, दाल, चावल रोटी के साथ रायता परोसा गया, उन्हें देसी गाय के दूध से बनी खीर भी परोसी गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बसंती और उनके पति मनीराम को साथ में बैठाया और बड़े ही चाव से भोजन किया उन्होंने कहा कि खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना है। 

 पूरा लेख पढ़े और पसंद आए तो लाइक और शेयर करें। अब आगे हम यह बताने की कोशिश करेंगे कि यह ट्रेंड कैसा चल रहा है जबकि त्रेता और द्वापर में कैसा था। सतयुग, द्वापर, त्रेतायुग और अब कलयुग प्रकृति का कालचक्र चलता ही रहता है। भगवान शिव शंकर, भगवान श्रीराम और भगवान श्री कृष्ण आज कलयुग के सभी देवी देवताओं ने कोई भेदभाव नहीं किया। सभी मानव रूप में अवतरित होकर समाज को एक दूसरे को जोड़ने और बराबरी का संदेश देने और मानव का कर्म करते हुए मानवता की रक्षा के लिए भरसक प्रयास किए। उन अनेक दिलों को तारने और आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाकर अनन्य भक्ति प्रदान की।



लेकिन रामचरितमानस में कहा गया है कि स्वारथ लागि करै सब प्रीती। सुर, नर, मुनि सब की यह रीती।। अर्थात कलयुग में अधिकांशत: यह देखा गया है कि बगैर किसी निजी स्वार्थ के कोई किसी के साथ खड़ा नहीं होता। यहां तक की धनाढ्य और जिम्मेदार गरीब असहाय की बात सुनना नहीं चाहते हैं। जिस दिन लोग द्वापर में अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण के बताए हुए रास्ते पर चलकर गरीब ब्राह्मण सुदामा के पैर पखार कर अपने आंसुओं की जलधार से उनके कमल रूपी चरणों को धूलकर अपने सिंहासन पर बिठाया और दो मुट्ठी चावल के बदले दो लोक देकर सभी कष्टों को हर लिया था। श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा सुनकर आज कलयुग में भी लोग भाव विभोर हो जाते हैं। लेकिन आज के राजनेताओं को यह मालूम होना चाहिए की रसोई गैस का सिलेंडर कितना महंगा मिल रहा है उसके बाद अनुसूचित जाति या फिर अन्य वर्ग के लोग 2 जून की रोटी का प्रबंध कैसे करते हैं इसको भी ध्यान में रखना चाहिए। सिर्फ इतना नहीं होना चाहिए कि किसी अनुसूचित जाति के घर खाना खाकर और मीडिया को पहले से बुलाकर कुछ फोटो खिंचवा कर बड़े बड़े अखबार और टीवी चैनलों में प्रचार प्रसार कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर चल देते हैं लेकिन भोजन के बदले में शायद अनुसूचित जाति या अन्य गरीब को कुछ भी नहीं मिलता। यहां तक की उसकी जो समस्याएं होती हैं उसको भी अनुसूचित जाति के घर भोजन करने वाले राजनेता दूर करने की कोशिश नहीं करते। जबकि हमारी सनातन परंपरा के अनुसार यदि कोई हमें पानी पिलाता है तो हम उसके हाल-चाल पूछते हैं और उसको सुखी रहने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर धन्यवाद देते हैं।



आज कलयुग में निज स्वार्थ इंसान के अंदर ईतना व्याप्त हो गया है कि वह आत्मा और परमात्मा की बात करना तो दूर सोचता भी नहीं है। यह बात सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर ही नहीं बल्कि उन सभी राजनेताओं पर ठीक बैठती है जो अनुसूचित जाति के बच्चों को गोद में लेकर और उनके घर खाना खाकर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहते हैं। उस दिन हम सब मान लेंगे जब 10 फीसद अपर कास्ट के बड़े राजनेता अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिम वर्ग के लोगों को अपना सिंहासन दे देंगे और साथ में बैठायेंगे। इसके साथ ही अपने बच्चों की शादी बरात गरीब अनुसूचित जाति के घर करेंगे। वह सबसे बड़ा दिन होगा अर्थात बीजेपी के अनुसार सतयुग और द्वापर छोड़ सिर्फ त्रेता काल अर्थात रामराज पूरी तरह आ जाएगा।

सूत्रों द्वारा पता चला है कि बीजेपी के कई बड़े अपर कास्ट के राजनेताओं की बेटियां मुस्लिम वर्ग के राजनेताओं के घर ब्याही गई हैं। लेकिन ऐसा अपर कास्ट का राजनेता शायद नहीं होगा जिसने अपने बेटे बेटी की शादी गरीब किसान और अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के घर शादी बरात की हो। समाज में इतनी छुआछूत की भावना व्याप्त है कि लोग अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के घर अपर कास्ट के लोग पानी तक नहीं पीते हैं और ना ही उनकी चारपाई पर बैठना स्वीकार करते हैं। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लोगों को मंदिर जाने की भी पूरी तरह आजादी नहीं मिल पाई है। जहां तक मेरी जानकारी है कि कोई ऐसा बड़ा मंदिर नहीं होगा जहां कोई अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का मुख्य पुजारी हो। बड़े मंदिरों में अक्सर अपर कास्ट के लोग ही मुख्य पुजारी होते हैं। जबकि किसी कवि ने कहा था कि यदि हरिजन के छू लेने से है मंदिर का कल्याण नहीं, तो मैं बस यही कहूंगा मंदिर में पत्थर है भगवान नहीं। जबकि सभी मानव और जीव धारियों का शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है और अंत में यह पांचों तत्व अपनी अपनी जगह चले जाते हैं। शरीर में लाल रुधिर कणिकाएं और श्वेत रुधिर कणिकाएं होती हैं। यह सभी मनुष्य में पाई जाती हैं और सब का रंग एक जैसा ही होता है। फिर यह ऊंच-नीच और छुआछूत की भावना जब ईश्वर ने नहीं की है तो समाज क्यों करता है। यह भावना मंदिर मस्जिद ही नहीं ऑफिसों में भी देखी जा सकती है। जहां कहा जाता है कि यह कुर्सी बड़े साहब की है और वही स्टूल छोटे कर्मचारी का है। इतना ही नहीं यदि बड़े साहब को देख कर के कोई छोटा कर्मचारी नमस्कार नहीं करता है तो उसको बड़े साहब का कोप भाजन का शिकार बनना पड़ता है।



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