वर्तमान सरकार मरीजों के साथ ही, गरीब, किसान, मजदूरों और नवजवानों को असहनीय दर्द दे रही है। इन सबके बाद भी उत्तर प्रदेश की जनता बहुत ही समझदार है। जिस पार्टी पर भरोसा करती है उसको आंखें बंद कर अपना समर्थन देती रहती है। कई दशक तक कांग्रेस पार्टी को यही उत्तर प्रदेश की जनता ने सत्ता पर काबिज रहने के लिए अपना अमूल्य मत देती रही। उस समय भी कई परेशानी आई होंगी लेकिन जनता ने सहन किया।
यह अलग बात है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के साथ ही देश को बहुत कुछ दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन किसानों को पांच बीघे जमीन का पट्टा कर जमीन का मालिक बना दिया। हरित, क्रांति, श्वेत क्रांति, औद्योगिक क्रांति, सूचना क्रांति, आरटीआई, मनरेगा आदि के साथ ही बड़े-बड़े अस्पताल इंजीनियरिंग कॉलेज और प्रबंधन कॉलेज व उद्योग में काम करने वाले कर्मचारी तैयार करने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान आईटीआई की स्थापना की। इसके साथ ही बेटियों की पढ़ाई के लिए कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की स्थापना की। इसके बाद भी आज की सत्ताधारी दल हर अपनी नाकामी का दोष कांग्रेस पार्टी पर मढती है।
आज देश में सबसे बड़ी बीमारी बेरोजगारी है। इस महा बेरोजगारी के इलाज के लिए अभी तक सरकार ने कोई भी ठोस पहल नहीं की है। जिस प्रकार आए दिन डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के साथ ही सीएनजी, पीएनजी के दामों में इजाफा हो रहा है। ठीक उसी प्रकार बेरोजगारी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। लेकिन जिम्मेदारो के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा है। गरीब, किसान, नवजवान, बेरोजगार हताश, निराश और त्राहि-त्राहि कर रहा है।
2014 के पहले बीजेपी पार्टी ने जोर शोर से प्रचार प्रसार किया था कि बहुत हुई डीजल, पेट्रोल की मार अबकी बार मोदी सरकार। महंगाई को लेकर स्मृति ईरानी और योग गुरु बाबा रामदेव काफी हमलावर रहे थे। वर्तमान सरकार कोई भी छोटा कार्य करती है तो उसके प्रचार-प्रसार में इतना पैसा खर्च किया जाता है जितना उस योजना के क्रियान्वयन में लगता होगा। करोना महामारी के समय मूलभूत सुविधाओं के साथ ही जीवन रक्षक दवाएं, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन की मारामारी रही। इतना ही नहीं लोगों को पेरासिटामोल दवाई भी नहीं मिल पाए। यह तो अच्छा ही रहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज कोरोना काल में बहुत ही कम इलाज कराने शहर में आए थे। नहीं तो सरकार मरीजों और तीमारदारों को पानी भी मुहैया कराने में विफल ही साबित होती।
हिंदू और हिंदू धर्म की दुहाई देने वाली बीजेपी सरकार करोना कॉल में अपनी जान गवाने वाले लोगों को अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी भी मुहैया नहीं करा पाई। यहां तक कि बहुत सारे परिजनों ने अपनों को गंगा के साथ ही अन्य नदियों में बिना अंतिम संस्कार किए हुए फेंक दिया। गंगा में उतराती हुई लाशे काफी चर्चा का विषय बनी।
3 नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने लगभग 13 माह दिल्ली के बॉर्डर पर जाड़ा गर्मी और बरसात सहते हुए धरना प्रदर्शन दिया। इस बीच लगभग 700 किसानों ने अपनी जान गवाई है। आखिरकार किसानों की बात मानते हुए सरकार ने तीन और नए कृषि कानूनों को वापस लिया। साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी को लेकर कानून बनाने और किसानों पर दर्ज मुकदमो पर विचार करने के लिए कहा था लेकिन अभी अमल नहीं हो पाया।
दूसरी तरफ लखीमपुर में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने का मामला भी बहुत ही जोर शोर से मीडिया में प्रसारित हुआ इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को मुख्य आरोपी बनाया गया उनकी सम्मानजनक गिरफ्तारी के चंद दिनों के बाद ही उनको जमानत मिल गई। दूसरी तरफ कई छोटे-छोटे मुकदमों में आरोपित आजम खान कई माह तक जेल की रोटी खानी पड़ी।
दूसरी तरफ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों ने रेलवे में RRB NTPC and group D भर्ती को लेकर आरोप लगाए थे। आक्रोशित छात्रों की मांग को दबाने के लिए पुलिस ने छात्रों के हॉस्टल में घुसकर जिस बर्बरता पूर्वक छात्रों पर व्यवहार किया था उसकी चंद खबरें बनने के बाद वह भी मामला दब गया। उत्तर प्रदेश की जनता ने इन सब को भला कर फिर बीजेपी पर भरोसा किया और प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने के लिए अपना अमूल्य मत दिया।
यह अलग बात है कि बीजेपी सरकार ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 में कई माह तक पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के साथ ही सीएनजी, पीएनजी और अन्य वस्तुओं के मूल्य में बढ़ोतरी नहीं की थी लेकिन चुनाव समाप्त होते ही सरकार ने पूरा बोझ जनता के कंधों पर डाल दिया। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के साथ ही सीएनजी, पीएनजी एक माह के अंदर ₹10 से ज्यादा बढ़ोतरी कर दी और रसोई गैस में सैकड़ों रुपए बढ़ा दिए गए। इस कारण प्रदेश में वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं, जिसकी मार आम जनता पर पड़ रही है। करोना कॉल में रोजी, रोजगार छिन जाने के कारण जनता आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही है।
अभी जल्द समाप्त हुई हाईस्कूल, इंटर की परीक्षाओं में बच्चों ने अपना दुखड़ा संवाददाताओं को बताया कि कोरोना महामारी के चलते हम लोगों की 2 साल की पढ़ाई बर्बाद हो गई। इसके बाद परीक्षा में आए कठिन प्रश्न पत्र ने उनको और झकझोर दिया है। अब यह बच्चे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं कि हम लोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करेंगे क्योंकि पढ़ाई न होने के कारण हमारी नीव कमजोर हो चुकी है।
10 से 12 फीसद तक दवाएं भी महंगी हो गई हैं जिससे मरीजों को अपना इलाज कराने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। दवाओं पर महंगाई की मार गरीब, किसान, मजदूर, नवजवान को अधिक दर्द दे रही है। जिनके पास रोजी रोजगार नहीं बचे हैं। आज आम आदमी की हालत इतनी बदतर हो गई है कि संस्कारवान बच्चे भी अपने मां-बाप का इलाज कराने में कतरा रहे हैं। क्योंकि एमटेक, बीटेक, एमबीए और मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी रोजी रोजगार नहीं है। आज पढ़े-लिखे डिग्री धारियों की स्थित यह हो गई है कि वह चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करने से गुरेज नहीं करते हैं।
दूसरी तरफ नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी की ओर से 1 अप्रैल से दवाओं के दाम बढ़ाने का असर बाजार में दिखने लगा है। प्रदेश में हदय रोग से संबंधित दवाओं के दाम 10 से 12 फीसद तक बढ़ गए हैं। मधुमेह ग्रस्त जिन हृदय रोगियों को 1 दिन में लगभग ₹78 की दवा खानी पड़ती थी। उन्हें अब ₹88 खर्च करने पड़ रहे हैं अर्थात हर माह में ₹300 अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा अन्य बीमारियों की दवाओं के दाम भी बढ़ चुके हैं। अधिकांश शाह दवाओं के मूल्य में 1 से 2 फीसद की बढ़ोतरी होती रही है लेकिन इस बार 12 फीसद तक दवाओं के दाम बढ़ गए हैं। नए बैच की दवाएं आते ही मरीजों पर अतिरिक्त भार पड़ने लगा है। डायबिटीज, हृदय रोग, अर्थराइटिस आदि ऐसी बीमारियां हैं जिनमें नियमित दवा चलती है। इन रोगियों की संख्या सबसे ज्यादा है। सरकारी संस्थानों में पूरे प्रदेश से रोजाना लगभग 3000 रोगी ओपीडी में आते हैं दवा कारोबारियों के अनुसार हृदय रोग, मधुमेह, ब्लड प्रेशर के अलावा बुखार,संक्रमण, किडनी, टीवी, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जुड़ी लगभग 376 दवाओं के मूल्य बढ़ चुके हैं।
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