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| Indian Railway |
सफर करने वाले यात्रीगण और देश की जनता जान ले और समझ ले कि हमारे पैसे से हमारा रेलवे विभाग गलत तरीके से कितनी कमाई कर रहा है। सुविधाओं के नाम पर पीने के लिए शुद्ध पानी मिलना कठिन है। पुष्पक एक्सप्रेस और लखनऊ मेल के मामलों से यह कहना मुश्किल नहीं होगा कि रेलवे विभाग में सीटों की तुलना में 50 फीसद से अधिक वेटिंग के टिकट जारी किए जाते हैं। जिसमें से 10फीसद टिकट भी कंफर्म नहीं हो पाते हैं। वेटिंग के टिकट ऑटोमेटिक निरस्त हो जाते हैं। इससे लखनऊ में रेलवे को हर साल 118 करो रुपए (118 crore Rupees) की कमाई हो रही है। मान लिया जाए कि कोई यात्री लखनऊ से उन्नाव जाना चाहता है, किसी कारण बस और वह अपना टिकट निरस्त कराना चाहता है, तो उसको इसके बदले में कुछ भी वापस नहीं मिलेगा। हां समय जरूर बर्बाद हो जाएगा।
एसी टिकट कंफर्म टिकट निरस्त करवाने पर रेलवे फर्स्ट, सेकंड , थर्ड एसी में 240, 200 और 180 रुपया काटता है। स्लीपर में 120 रुपया की कटौती की जाती है, लेकिन वेटिंग या फिर आरएसी टिकट होने पर कैंसिलेशन चार्ज फ्लैट 60 रुपया है। जीएसटी लगने के बाद यह 65रुपया तक पहुंच जाता है।
रेलवे बोर्ड के अधिकारी ने बताया कि लखनऊ से सप्ताहिक और द्विसप्ताहिक सहित 240 ट्रेनों का आना जाना होता है। 180 ट्रेनिंग रोज आती जाती है। इनमें से औसतन 300 टिकट प्रति ट्रेन निरस्त होते हैं। इस लिहाज से वर्ष भर में 1,97,10,000 टिकट ऑटोमेटिक निरस्त हो रहे हैं। जिनसे रेलवे 60 रुपया प्रति टिकट की दर से 118 करोड़ों रुपए की आमदनी कर रहा है। यह आमदनी पीक सीजन में और भी ज्यादा रहती है। यही नहीं प्रदेश में ऑटोमेटिक निरस्त होने वाले टिकटों से रेलवे हर साल दो हजार करोड़ रुपए तक राजस्व प्राप्त करता है।
एक यात्री ने बताया कि यदि टिकट पैसेंजर निरस्त करवाता है तो चार्ज लिया जाना वाजिब है, लेकिन ऑटोमेटिक निरस्त होने वाले टिकटों पर यात्रियों को फुल रिफंड दिया जाना चाहिए। साथ ही कहा कि सुविधाएं नहीं मिल रही हैं और कटौती जारी है।
उधर दैनिक यात्री एसोसिएशन के अध्यक्ष उप्पल ने आरोप लगाया है कि रेलवे प्रशासन जानबूझकर 50 फीसद से अधिक वेटिंग ओपन करती है। रेलवे को यह लूट रोकनी चाहिए। साथ ही कहा कि इस मामले को रेलवे मंत्रालय के समक्ष उठाया जाएगा।

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