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| फूलन देवी |
छोटे से बड़े डाकू और बदमाशों का इतिहास खंगाला जाए तो जन्म से सभी मासूम और अच्छे ही थे, लेकिन पुलिस के साथ ही राजनेता और गली मोहल्लों के दबंग लोगों के अत्याचार से पीड़ित होकर समाज से बगावत कर खूंखार बदमाश बन गए। लेकिन बड़े खूंखार बदमाशो ने मानवता नहीं खोई। सूत्रों से मिली जानकारी के के अनुसार कोई भी खूंखार डाकू बदमाश ऐसा नहीं होगा जिसने गरीब, किसान, नवजवान, बुजुर्गों, छात्रों और बच्चों को प्रताड़ित किया हो।
अधिकांशता सुना जाता है कि अमुक राजनेता ने गरीब लोगों की जमीन पर कब्जा कर लिया लेकिन यह बहुत ही कम सुना होगा कि किसी बड़े डाकू ने किसी गरीब की जमीन पर कब्जा किया हो। यदि किसी गरीब आदमी को कोई सताता है तो उसको पुलिस चाहे मदद न की हो, लेकिन यदि पीड़ित व्यक्ति बड़े डाकू के पास पहुंच जाता था तो उसकी मदद जरूर हुई होगी। यदि इन बड़े डाकू बनने से पहले जब सताए गए थे तो पुलिस ने इनकी समस्या सुन लिया होता और कार्रवाई की होती तो शायद यह खूंखार बदमाश न बनते और एक अच्छे नागरिक के तौर पर अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहे होते।
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| छविराम |
बता दें कि विकास दुबे ने 8 पुलिसवालों की हत्या की थी जबकि छविराम ने 9 पुलिस वालों को मौत के घाट उतारा था।यदि पुलिस अपना कर्तव्य ठीक ढंग से करें और छोटी से छोटी शिकायतों को गंभीरता से लें तो अपराध आधे से भी ज्यादा कम पड़ जाएंगे। साथ ही सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति कारगर साबित होगी। पुलिस के सामने एक बड़ी समस्या यह भी है कि जब वह सही ढंग से अपना कार्य करती है और अपराधियों पर दबाव बनाती है तो संभ्रांत व्यक्तियों के साथ ही बड़े-बड़े राजनेताओं का फोन घर बनाने लगता है। ऐसे मौके पर सिपाही से लेकर बड़े अफसर तक मामले को रफा-दफा कराने में लग जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति की अंतरात्मा अंदर ही अंदर उसको कोसने लगती है और एक समय ऐसा आता है कि वह समाज से बगावत कर हर वह कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है जो न्यायप्रिय नहीं होता है।

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