विश्व स्वास्थ्य दिवस आज। इस मौके पर यदि जिम्मेदार पूरी तरह ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करे तो काफी हद तक लोगों को मदद पहुंचाई जा सकती है। लेकिन यहां तो राजनीतिक नफा नुकसान को देखते हुए सारे भाषण दिए जाते हैं। इसी को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। जबकि ऐसा नहीं है क्या हमारे देश में 70 साल राज करने वाली कांग्रेस सरकार ने कुछ नहीं किया है।
कांग्रेस सरकार में ही बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेज और एसजीपीजीआई जैसे संस्थानों को जनता के लिए उपलब्ध कराया है। हां उस समय कोरोना वायरस महामारी नहीं थी। कांग्रेस के समय ही आज के 50 साल पहले चेचक के टीके लगे थे जो 50 साल से ऊपर के उम्र के लोग हैं उनके दाहिने हाथ पर आज भी देखे जा सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के एक भी नेता और मंत्री ने इसका श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। जबकि वर्तमान के सत्तारूढ़ दल बीजेपी हमेशा यह कहती रहती है कि हमने जनता को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को 2019 के आम चुनाव से पहले 16वीं लोक सभा के आख़िरी भाषण में भी कांग्रेस और गांधी परिवार के कथित भ्रष्टाचार को निशाना बनाया.था। पीएम मोदी ने भाषण में कहा, "कांग्रेस के 55 साल और मेरे 55 माह. वो सत्ताभोग के 55 साल हैं और हमारे 55 महीने सेवा भाव के 55 महीने हैं." पीएम मोदी ने कुछ ऐसे ही भाषण साल 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान भी दिये थे।
पीएम मोदी ने बताया, 2014 से पहले देश में 90 हजार से भी कम मेडिकल सीटें थी और बीते 7 वर्षों में मेडिकल की 60 हजार नई सीटें जोड़ी गई हैं। उत्तर प्रदेश में भी 2017 तक सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ 1900 मेडिकल सीटें थी और अब डबल इंजन की सरकार में 1900 अतिरिक्त सीटें जोड़ी गई हैं। इसका मतलब है कि यहां के ज्यादा से ज्यादा युवा डॉक्टर बनेंगे और गरीब मां बाप के बेटे बेटियों को भी डॉक्टर बनने में आसानी होगी।
पीएम ने कहा, ''आजादी के बाद देश में 70 वर्षों में जितने डॉक्टर बने उससे ज्यादा डॉक्टर हम अगले 10-12 सालों में तैयार कर देंगे। वन नेशन वन एक्जाम को लागू किया गया है इससे खर्च बचने के साथ परेशानी कम हुई है। प्राइवेट कॉलेज की फीस को नियंत्रित करने के लिए कानूनी प्रावधान भी किए गए हैं, अब हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में भी मेडिकल की बेहतरीन पढ़ाई का विकल्प दे दिया गया है।''
कोरोना वैक्सीन की 100 करोड़ डोज लगने पर पीएम मोदी ने कहा, ''4 दिन पहले ही देश ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज का बड़ा लक्ष्य प्राप्त किया है और इसमें यूपी का भी बहुत बड़ा योगदान है। मैं यूपी की समस्त जनता, कोरोना वॉरियर्स सरकार प्रशासन और इससे जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं। आज देश के पास 100 करोड़ वैक्सीन डोज का सुरक्षा कवच है लेकिन इसके बावजूद कोरोना से बचाव के लिए यूपी अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है।
साल 1940 के बाद से संक्रामक रोगों से प्रभावित होने वाले रोगियों की संख्या बढ़ी है कई नई रोग हमारे सामने हैं। भविष्य में नए रोक हमारे सामने आ सकते हैं। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार संक्रामक रोगों के बढ़ने की बड़ी वजह मानव शास्त्री और जनसांख्यिकी बदलाव है। गौरतलब है कि पिछले दिनों अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में लगभग 6 लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है। भारत में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1000 लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है। भारत देश में 483 लोगों पर एक नर्स है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में एंटीबायोटिक दवाइयां देने के लिए उचित तरीके से प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है जिससे जीवन रक्षक दवाइयां रोगियों को नहीं मिल पाती हैं।
विगत दिनों World health organisation विश्वास संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि आने वाले समय में हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियां भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे। रिपोर्ट के अनुसार सन 2012 से 2030 के बीच इन बीमारियों के इलाज पर लगभग 6. 2 खरब डालर (41 लाख करोड़ रुपए से अधिक) खर्च होने का अनुमान है। रिपोर्ट में इन बीमारियों के भारत और चीन के शहरी इलाकों में तेजी से फैलने का खतरा बताया गया है। असंक्रामक रोग शहरी आबादी के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा नहीं है बल्कि इसके चलते अर्थव्यवस्था के भी प्रभावित होने का अनुमान है। बढ़ता शहरीकरण और वहां पर काम और जीवन शैली की स्थितियां असंक्रामक रोगों के बढ़ने का मुख्य कारण है। वर्ष 2014 से 2050 के बीच भारत में 40 करोड़ आबादी शहरों का हिस्सा बनेगी। इसके चलते शहरों में अनियोजित विकास होने से स्थिति बदतर होगी।
कुछ समय पहले नीति आयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खर्च बढ़ाने की जरूरत बताई थी। नीति आयोग के सदस्य वी के पाल ने कहा था कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और उन्हें देश के हर व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्यों को मिलकर स्वास्थ सेवाओं के मद में खर्च बढ़ाना होगा। देश में आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय स्थिति में हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में जीडीपी का मात्र डेढ़ फीसद खर्च होता है, जबकि कई देश स्वास्थ्य सेवाओं के मद में 8 से 9 फीसद तक खर्च कर रहे हैं।
करोना महामारी के समय जिस तरह स्वास्थ्य चरमरा गई थी उससे यह सोचने को मजबूर किया है कि स्वास्थ्य सेवाओं में अभी बहुत सुधार की जरूरत है। देश का स्वास्थ्य ढांचा बेहतर होता तो करोना महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान जनता को और अधिक सुविधाएं दी जा सकती थी। अनेक डॉक्टर खतरा उठाकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे थे। इसके साथ ही निजी अस्पतालों का ध्यान आर्थिक लाभ प्राप्त करने पर ही रहा। इस दौर में गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए अस्पतालों में स्ट्रेचर, जीवन रक्षक दवाएं, ऑक्सीजन की कमी जैसी मूलभूत सुविधाएं ना मिल पाए तो देश के स्वास्थ्य पर सवाल उठाना लाजमी है।

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