शासन ने निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने की अनुमति देकर गरीब जनता की कमर तोड़ कर रख दी है। इसका असर सबसे ज्यादा उन गरीब किसान मजदूर पर पड़ेगा जो रोज कमाने खाने वाले हैं और कोरोना संक्रमण काल में उनकी रोजी-रोटी छिन गई है। उनके सामने हालात तो ऐसे हैं कि अपने नौनिहालों को अब शिक्षा देने के लिए सोचना पड़ रहा है कि बच्चों को एडमिशन कराया जाए या फिर उनके पेट पालने के लिए इंतजाम किया जाए या फिर उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। चंद दिन पहले कापी-किताबों में बढ़ोतरी की गई थी और अब निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने की अनुमति देकर जनता पर एक और बोझ लाद दिया गया है।
अब प्रदेश में संचालित सभी शिक्षा बोर्ड हो से जुड़े निजी स्कूल सत्र 2022-23 की में मानसून फीस बढ़ा सकते हैं हालांकि इसमें संतुलित वृद्धि ही करनी होगी इसके लिए कुछ शर्तें तय की गई है। अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला की ओर से जारी आदेश में शुल्क वृद्धि वर्ष 2019-20 की शुल्क संरचना को आधार वर्ष बनते हुए उत्तर प्रदेश का वित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम 2018 की धारा 4 (1) के अंतर्गत नियमानुसार की जा सकती है। इसमें शर्त लगाई गई है कि सत्र 2022 23 में वार्षिक वृद्धि की गणना नवीनतम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर तो की जाए लेकिन उसके साथ 5% की जो शुल्क बढ़ोतरी होनी है। वह वर्ष 2019-20 में लिए गए वार्षिक शुल्क के 5% से अधिक न हो।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 मैं कुछ माह डीजल पेट्रोल रसोई गैस के साथ ही अन्य वस्तुओं की बढ़ोतरी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। यदि यह बढ़ोतरी चुनाव के पहले की जाती है तो शायद जनता बीजेपी को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के लिए अपना मतदान न करती। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नारा दिया गया था कि बहुत ही पेट्रोल डीजल की मार अबकी बार मोदी सरकार।
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