उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में ओपीडी और भर्ती मरीजों का ऑनलाइन जमा होने वाला शुल्क संस्थान के बैंक खाते में पहुंचा ही नहीं। जब खुलासा हुआ तो अधिकारी मामले को दबाने में जुट गए। बाद में आला अधिकारियों के निर्देश पर जांच कमेटी बनाई गई। लोहिया संस्थान में हॉस्पिटल इनफॉरमेशन सिस्टम एचआईएस सॉफ्टवेयर व्यवस्था लागू है। इसमें मरीज तीमारदार नगद और ऑनलाइन फीस कार्ड के माध्यम से जमा करते हैं।
लगभग 8 से 1000000 रुपए संस्थान के बैंक खाते में जमा होते हैं। जो लोग नगद के जमा करते हैं वह राशि संस्थान के बैंक खाते में जमा हो रही ह,ै जबकि ऑनलाइन जमा संस्थान के बैंक खाते तक नहीं पहुंच रही है संस्थान के अधिकारियों ने बैंक खाते की जांच की तो इस बात का खुलासा हुआ कि अफसरों ने हफ्ते भर का ऑनलाइन रिकॉर्ड भी खंगाला जिसमें संस्थान और बैंक खाते में जमा रकम में काफी अंतर मिला। अफसरों ने जमा होने वाले पैसे की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि ऑनलाइन जमा पैसा बैंक को नहीं मिला ऐसे में ऑनलाइन व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गई है। संस्थान प्रशासन ने दावा किया है कि 3 माह में जमा हुई राशि का रिकॉर्ड चेक किया जा रहा है जिसकी भी संलिप्तता मिली उस पर कठोर कार्रवाई होगी सीएमएस डॉ राजन भटनागर ने कहा कि उन्हें भी मामले की सूचना मिली है लेकिन अभी इस बारे में कुछ बता नहीं पाएंगे।
उधर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकलयूनिवर्सिटी के ट्रामा सेंटर में अब बिना मरीज लिए निजी एंबुलेंस का प्रवेश दलालों के खेल पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबंधित किया गया है। निजी एंबुलेंस परिसर के अंदर लाकर मरीजों को निजी अस्पताल ले जाते थे। विगत दिनों ऐसे मामले में एक दलाल को पकड़ा गया था। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रशासन ने परिसर में आने वाली निजी एंबुलेंस के वीडियो बनवाना शुरू कर दिया है। पुलिस को इनके नंबर दिए जाएंगे ताकि जरूरत पड़ने पर कार्रवाई हो सके। ट्रामा प्रभारी डॉ संदीप तिवारी ने बताया कि परिसर के बाहर खड़ी होने वाली एंबुलेंस पर कार्यवाही होने से बड़ी राहत है। वही रोड पर भी जाम की स्थिति नहीं बन रही है। बीते दिनों ट्रामा में दबोचे गए दलाल को पुलिस ने छोड़ दिया था। इसके बाद ट्रामा परिसर में खाली निजी एंबुलेंस के प्रवेश पर रोक लगाई गई है।
दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में इलाज मिलना और मुश्किल हो सकता है। कई विभागों की तो यूनिट बंद होने का संकट है। महानिदेशालय के फरमान है जिसमें सरकारी अस्पतालों में 10 सालों से अधिक समय तक तक जमे डॉक्टरों को जिले या फिर मंडल से बाहर किया जाएगा। सभी अस्पतालों से 1 सप्ताह में लेवल 1 से ३ तक डॉक्टरों की सूची मांगी गई है। अनुमान है कि हर सरकारी अस्पताल में ऐसे 20 से ज्यादा डॉक्टर होंगे जो 10 साल से अधिक समय से सेवा दे रहे हैं। कुछ विभागों के विशेषज्ञों का तबादला हो गया है तो उनकी यूनिट ही बंद हो जाएगी। स्वास्थ्य निदेशालय ने बीते साल वर्षों से जमे बाबुओं को गैर जनपद भेजा था।
अब सरकारी अस्पतालों में 10 साल से अधिक समय से काम कर रहे डॉक्टरों की सूची तलब की गई है। निदेशक प्रशासन डॉक्टर राजा गणपति और गुरुवार को बलरामपुर, लोहिया, डफरिन झलकारी बाई, रानी लक्ष्मीबाई, लोकबंधु, रामसागर मिश्र समेत सभी अस्पतालों से लेवल 3 तक के डॉक्टरों की जानकारी मांगी है। इसके बाद डाक्टरों के तबादले पर फैसला लिया जाएगा। इसमें बलरामपुर, सिविल अस्पताल में खास विधा के डॉक्टरों के तबादला होने पर कई विभाग बंद होने की कगार पर आ जाएंगे इसलिए यह है कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ में किस विधा के डॉक्टर सीमित हैं। प्लास्टिक सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, यूरोलॉजी विभाग में एक-एक डॉक्टर है। इसी तरह नेफ्रोलॉजी की यूनिट में भी का संकट है।
उधर पीजीआई में पल्मोनरी मेडिसिन के एक डॉक्टर के विरुद्ध कर्मचारी लामबंद हो गए हैं। पीजीआई कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र कुमार यादव और महामंत्री धर्मेश कुमार ने निदेशक डॉक्टर आरके धीमन को पत्र भेजा है। इसमें महासंघ के नेताओं ने पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एक डॉक्टर पर आरोप लगाया है कि संस्थान में कार्यरत कर्मचारी कृष्ण प्रताप सिंह को थप्पड़ मारने और नेतागिरी निकालने की धमकी दी है।
दूसरी तरफ लोकबंधु राजनारायण संयुक्त अस्पताल के स्टाफ नर्स नवीन जी गौड़ ने अस्पताल निदेशक को पत्र देकर एक सर्जन के विरुद्ध शिकायत की है। नवीन का आरोप है कि डॉक्टर ने उनसे अपमानजनक और अभद्र शब्दों का प्रयोग किया है।




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